Book Title: Mahamantra ki Anupreksha
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Mangal Prakashan Mandir

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Page 11
________________ 3 नमस्कार रूपी वज्र ग्रहकार रूपी पर्वत का नाश करता है | नमस्कार मानव के मनोमय कोष को शुद्ध करता है । अहकार का स्थान मस्तक है । मनोमय कोष शुद्ध होने से अहकार अपने श्राप विलोन हो जाता है । नमस्कार मे शुभकर्म, उपासना एवं ज्ञान इन तीनों का सगम है । शुभकम का फल सुख, उपासना का फल शान्ति एव ज्ञान का फल प्रभुप्राप्ति है । नमस्कार के प्रभाव से इस जन्म मे सुख, शान्ति एव जन्मान्तर मे परमात्मपद की प्राप्ति सुलभ होती है । कर्म-फल मे विश्वासात्मक बुद्धि ही सद्बुद्धि है | सद्बुद्धि शान्तिदायक है । नमस्कार से उसका विकास होता है एव उसके प्रभाव से हृदय मे प्रकाश उद्बुद्ध होता है । ज्ञान विज्ञान का स्थान वृद्धि है एव शान्ति श्रानन्द का स्थान हृदय है । वुद्धि का विकास एवं हृदय मे प्रकाश ही नमस्कार का असाधारण फल है । बुद्धि की निर्मलता निर्मलता एवं सूक्ष्मता मानव जन्म दुर्लभ है, उससे भी दुर्लभ पवित्र एव तीव्र बुद्धि | नमस्कार शुभकर्म होने से उसके द्वारा बुद्धि तीक्ष्ण होती है | नमस्कार मे भक्ति की प्रधानता होने से बुद्धि विशाल एव पवित्र वनती है | नमस्कार मे सम्यक् ज्ञान होने से बुद्धि सूक्ष्म भी वनती है । इस प्रकार वुद्धि को सूक्ष्म, शुद्ध एव तीक्ष्ण वनाने को सामर्थ्य नमस्कार में निहित है। परमपद की प्राप्ति हेतु वुद्धि के इन तीनो गुणो की आवश्यकता है । सूक्ष्मबुद्धि बिना नमस्कार के गुण जाने नही जा सकते, शुद्ध बुद्धि विना नमस्कार के गुणो का स्मरण चित्त रूपी भूमि मे सुदृढ नही किया जा सकता । L नमस्कार - कर्ता मे निहित न्याय, नमस्कार्य तत्त्व में निहित दया, एव नमस्कार क्रिया में निहित सत्य, वुद्धि को सूक्ष्म, शुद्ध

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