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हजारों वर्ष बीत गये किन्तु योगेश्वर श्री कृष्ण का मन्देश जो महाभारत में गीता के नाम से विख्यात है वह आज भी मानवसमाज के लिये पथ-प्रदर्शक है ।
कृष्णार्जुन- संवादरूप वह संदेश घर घर में काफी आदर पूर्वक पढ़ा जाता है क्योंकि उसमें धर्म की व्यापकता है, वैदिक धर्म की संकुचितता गीता में नहीं दिग्वाई देती । उसमें तो हिन्दू-धर्म की उदारता है । वैदिक--धर्म में निरर्थक क्रिया-कांड हैं, वर्ण की कट्टरता है, वह एक संकुचित सम्प्रदाय है पर वेद नाम का आधार रहने पर भी हिन्दू-धर्म के नाम से जो चीज़ तैयार हुई उममें अमाधारण विशालता है। उसमें नाना देव, नाना रीति रिवाज, नाना विचार आदि का अद्भुत समन्वय हुआ है और उसका बीज हमें श्रीमद्भगवद्गीता में मिलता है ।
हिन्दू-धर्म को जो उदार रूप प्राप्त हुआ है उसमें गीता का ही सब से बड़ा हाथ है । निःसन्देह हिन्दू नाम पीछे का है पर चीज