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तू चारों पुरुषार्थ प्राप्त कर । अर्जुन-एक ही ता दुर्लभ है चार चार की क्या बात ? श्रीकृष्ण-चारों तेरे हाथ में है (गीत २४) अर्जुन-जब मोक्ष यहीं है तो और पुरुषार्थों का क्या उपयोग ? श्रीकृष्ण तीनों के बिना मोक्ष नहीं रह सकता। चारों का अलग २ वर्णन । काम के सात्विक, राजस तामस आदि भेद । काम और मोक्ष दोनों का समन्वय । यहां चारों पुरुषार्थ संकटापन्न हैं इसलिये उठ । अधर्म की माया को दूर कर । यही सब धर्मो का मर्म है । बारहवाँ अध्याय सर्व-धर्म-समभाव] पृ. ९१
अर्जन-सत्र धर्मों का अगर एक ही सार है तो उनमें अहिंसा हिंमा, प्रवृत्ति निवृत्ति, मूर्ति अमूर्ति, वर्ण अवर्ण, त्याग, भक्ति आदि का भेद क्यों ? श्रीकृष्ण-मूल मे सब एक है [गीत २५] हिंसा अहिंसा समन्वय, पशु यज्ञ, इन्द्रिय यज्ञ, कर्मयज्ञ, धनयज्ञ, श्रमयज्ञ, मानयज्ञ, तृष्णायज्ञ, क्रोधयज्ञ, विद्यायज्ञ, औपधयज्ञ, प्राणयज्ञ, कीर्तियज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, आदि सात्विकयज्ञ, राजसयज्ञ, तामसयज्ञ । प्रवृत्ति निवृत्ति समन्वय, मूर्ति अमूर्ति समन्वय, वर्ण-व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, भक्ति, त्याग, सब धर्म निर्विरोध हैं और वे कर्मयोग का मंदेश देते हैं इसलिये तू न्याय रक्षण के लिये कर्म कर । तेरहवाँ अध्याय [धर्म शास्त्र] पृ. १०४
अर्जुन-के द्वारा कृष्ण-स्तुति गीत नं. २६] उसका प्रश्न-धर्म जब एक है तो उनक दर्शन भिन्न क्यों ? श्रीकृष्ण का वक्तव्य-धर्म शास्त्र का स्थान [गीत नं. २७ ] दर्शनादि शास्त्रों की जुदाई । अर्जुन-मुक्ति, ईश्वर, परलोक आदि धर्म में न रहें तो धर्म क्या रहे ? श्रीकृष्णविश्वहित ही धर्म है । मुक्ति की मान्यता पर विचार ।