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समझ (गीत १८) सत्य कल्याण की अपेक्षा रखता है । तथ्य भी सत्य असत्य होता है अतथ्य भी सत्य असत्य होता है । तथ्य के चार भेद-विश्वास-वर्धक, शोधक, पापोत्तेजक, निंदक । अतथ्य के छः भेद-वंचक, निंदक, पुण्योत्तेजक, स्वरक्षक, पररक्षक, विनोदी । जहां न्यायरक्षण है वहां सत्य है जहां सत्य है वहां अहिंसा है इन्हें समझ और कर्तव्य मार्ग में आगे बढ़ । नवमाँ अध्याय--- ( यमत्रिक) पृष्ठ ६२
अर्जुन-सारा जगत चंचल है (गीत १९) पर अगर सत्य अहिंसा रूप धर्म-चंचल हों तो अपरिग्रह शील आदि सब चंचल होजायगे । जगत मे पाप की गर्जना होगी इसलिये पुण्य पाप के निश्रित भेद बताओ।
श्रीकृष्ण का वक्तव्य-सत्य और अहिंसा मूल में अचंचल है, उनके विविध रूप चंचल हैं । ब्रह्म माया का दृष्टांत [गीत नं. २०] सत्य अहिंसा अचंचल है इसीलिये सभी अचंचल हैं, अचार्य शील और अपरिग्रह का निश्चित और सापेक्ष रूप । इसके लिये अंतर्दृष्टि की प्रेरणा । उससे कर्तव्य-निर्णय कर और आगे बढ़ । दसवाँ अध्याय (कर्तव्य-निकष ) ___ अर्जुन के द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति [ गीत २१ ] कर्तव्य-निर्णय की कसौटी का प्रश्न। श्रीकृष्ण-जगत सुख चाहता है, वही कसौटी है । अर्जुन--यदि सुख-वर्धन कसौटी है तो सुख के लिये किये जानेवाले सब पाप धर्म होजायेंगे । श्रीकृष्ण--पाप से अणु भर सुख मिलता है और दुःख पर्वत के समान । सुखवर्द्धन में अपना