Book Title: Krushna Gita
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 9
________________ ( ५ ) छट्ठा अध्याय ( नर-नारी - समभाव ) पृ. ३७ अर्जुन -- नर नारी में वैषम्य है फिर सर्व-जाति-समभाव कैसे ? श्रीकृष्ण — दोनों में गुण दोष हैं वैषम्य परिस्थिति-जन्य है, पत्नी शब्द का अर्थ, शारीरिक विषमता पूरक है, दोनों के सम्मिलन मे पूर्णता है, घर और बाहर के भेद ने विषमता बनाई, नर नारी समभाव होता तो द्रौपदी का अपमान न होता उस समभाव के लिये कर्म कर । ( अहिंसा ) सातवाँ अध्याय पृष्ठ ४५ अर्जुन --में सब जगह समभाव रखने को तैयार हूं पर पुण्य पाप समभाव कैसे रक्वं ? तुम अहिंसा और हिंसा में समभाव रखने को क्यों कहते हो ? श्रीकृष्ण बाहिरी हिंसा को ही हिसा न समझ, कभी हिंसा अहिंसा हो जाती है कभी अहिंसा हिंसा | हिंसा के पांचभेद - स्वाभाविकी, आत्मरक्षिणी, पररक्षिणी, आरम्भजा, संकल्पजा, 'इन में पांचवां भेद त्याज्य है । अहिंसा के छः भेद-बंधुजा, अशक्तिका, निरपेक्षिणी, कापटिकी, स्वार्थजा, मोहजा । इनमें से बंधुत्वा अहिंसा ही वास्तविक अहिंसा है । तेरी अहिंसा मोहजा है उसका धर्म से सम्बन्ध नहीं और तेरी हिंसा आत्मरक्षिणी है । हिंसा अहिंसा निरपेक्ष नहीं सापेक्ष हैं | तू हिंसा अहिमा का निर्णय विश्व कल्याण की दृष्टि से करके कर्तव्य कर । -- आठवाँ अध्याय- [ सत्य ] पृष्ठ ५४ अर्जुन -- यदि हिंसा अहिंसा सापेक्ष है तो कुछ भी निश्चय नहीं हो सकता । सत्य तो निश्चित और एकसा होता है । सत्य के अभाव मे धर्म नहीं रह सकता | श्रीकृष्ण तु तथ्य और सत्य का भेद --

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