________________
१२
किसने कहा मन चंचल है मैं नहीं कर रहा हूं और संभवतः उसके लिए अध्यात्म के सूत्र नहीं दिए गए। किन्तु प्रत्येक अध्यात्म के सूत्र के द्वारा जीवन का रूपान्तरण न हो, ऐसा हो नहीं सकता। अध्यात्म सूत्र से दिशा का परिवर्तन होता है और दिशापरिवर्तन से व्यक्तित्व का रूपान्तरण होता है। सारा स्वभाव बदल जाता है, समूचा दृष्टिकोण बदल जाता है, सारी धारणा बदल जाती है। व्यक्ति इतना रूपान्तरित हो जाता है कि उसे लगने लगता है क्या मैं वही हूं? या मेरे शरीर में कोई दूसरी चेतना प्रविष्ट हो गयी ? अपने-आपको आश्चर्य होने लगता है।
हमारा यात्रा-पथ छोटा है। हमें ज्ञाता और द्रष्टाभाव तक पहुंचना है और पहुंचना है एक साधन के द्वारा । वह साधन यह है कि हम प्राण की धारा को उस दिशा में प्रवाहित करें। इसके अतिरिक्त कोई दूसरा साधन नहीं है जिसका आलंबन लेकर हम उस स्थिति तक पहुंच जाएं। बीच का सारा क्रम उसे समझने के लिए, प्रवाह को मोड़ने के लिए है।
कुछ मनुष्य ज्ञाता और द्रष्टाभाव को उतना नहीं चाहते । उन्हें इसका अर्थ भी उतना आकर्षक नहीं लगता । वे चाहते हैं—स्वास्थ्य, दीर्घायु, सुख और शांति । प्रत्येक व्यक्ति, जो समाज के परिप्रेक्ष्य में जीता है, स्वास्थ्य चाहता है। उसकी कामना होती है-स्वस्थ रहूं, दीर्घायु बनूं । मरना पड़ता है, फिर भी जितना जिया जा सके, वह उतना जीना पसन्द करता है । दीर्घायु चाहता है, पर दुःखमय दीर्घायु नहीं चाहता । वह सुख चाहता है
और साथ-साथ शांति भी चाहता है। किन्तु क्या विवेक के बिना शांति संभव है ? क्या शांति के बिना सुख संभव है ? क्या शांति के बिना दीर्घायु और स्वास्थ्य संभव है ? ऐसा कभी नहीं हो सकता । आपकी चाह का रास्ता अलग है और प्राप्ति का रास्ता उल्टा है। चाह का क्रम है-स्वास्थ्य, दीर्घायु, सुख और शांति । किन्तु चलना पड़ेगा उल्टा। यदि विवेक है तो शांति होगी। यदि शांति है तो सुख होगा। सुखानुभूति होगी तो आयु दीर्घ होगी और स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
विवेक का अर्थ है-विवेचन करना, पृथक् करना, अलग-अलग करना । सबको एक समान नहीं मानना। इस विवेक को समझने के लिए यात्रा-पथ को ठीक से समझना होगा।
हमारे यात्रा-पथ का एक विराम है-विवेक । यात्रा-पथ के पूरे विराम ये हैं-श्रवण, ज्ञान, विज्ञान, प्रत्याख्यान, संयम, संवर, तप, निर्जरा,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org