Book Title: Khamansutta Pakkhiyasutta Khamangasuttani Savchuriyai
Author(s): Purvacharya, Lalitangvijayji
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 29
________________ भ्रमणसूत्रम् अवचूरिसमलंकृतम्। जयतु श्रीजिनवरेन्द्रप्रवचनम् । श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाई-जैनपुस्तकोद्धार-ग्रन्थाके ॥श्रीश्रमणसूत्रम् ॥ (अवधिसमलङ्कृतम्) echers FACCICROCEAESEOCOM नमो अरिहंताण॥ करेमि भंते! सामाइअं, सव्वं सावजं जोगं पञ्चक्खामि, जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि, करतंपि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥१॥ सर्वे नमस्कारपूर्व कार्य इत्यादौ स एव पठ्यते, समभावस्थेन प्रतिकंतव्यं, इत्यतः सामायिकसूत्र, करेमि भदंत सामायिक, सब्बसावा योग व्यापार प्रत्याख्यामि कथं, यावज्जीवं, यावत् शब्दः परिमाणे, समजीवनपरिमाणं जीवनं | जीवा, क्रियाशब्दोऽयं तया, अथवा यावजीवो यस्यां प्रत्याख्यानक्रियायां सा यावज्जीवा, तया, त्रिविधं योगं मनोवाकायब्यापार HERE Jain Education International For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org

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