Book Title: Khamansutta Pakkhiyasutta Khamangasuttani Savchuriyai
Author(s): Purvacharya, Lalitangvijayji
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 74
________________ पाक्षिकसूत्र अवचूरिसमलंकृतय ॥ ४६॥ से परिग्गहे चउविहे पन्नत्ते तं जहा दबओ खित्तओ कालओ भावओ, दवओ ण परिग्गहे सञ्चित्ताचित्तमीसेसु दवेसु, खित्तओ णं परिग्गेह (सवलोए) लोए वा अलोए वा, कालओ ण परिग्गहे दिवा वा राओ वा, भावओ णं परिग्गहे अप्पग्घे वा, महग्धे वा रागेण वा दोसेण वा ।। से परि० द्रव्यतः सर्वद्रव्येषु आकाशादिसर्वपदार्थेषु, यदुदाजहार-चूर्णिकाराः-गामधरंगणाइ पएसेसु ममीकारकरणाओ आगासपरिग्गहो १। चंकमणपएसममी. धम्मदब्बपरिग्गहो। ठाणनिसीअणतुअट्टणपएसममी-अधम्मपरिग्गहो ३। मायापिइ-x माइपसु जीवेसुममी जीवदव्यओ परि०४। हिरण्णसुवण्णाइपसु दब्बेसुममी पुग्गलदब्वपरि०५। सीउण्हवरिसकालेसु रिउछक्के वा* अन्नयरमुच्छियस्स कालपरिग्गहोत्ति ६। क्षेत्रतो लोके वा अलोके वा, लोकाऽलोकाकाशममत्वकरणादिति भावः। 'सव्वलोएत्ति' क्वचि. पाठः, सङ्गतश्वाय ग्रन्थान्तरः सह संवादात् । कालतो दिवा० दिनरात्र्यभिलाषादित्यर्थः, भावतोल्पाऽल्पमूल्ये महाथै बहुमूल्ये द्रव्ये इत्यादि चतुभङ्गी पुनरपि अरक्तद्विष्टस्य धर्माऽपकरणं द्रव्यतः परिग्रहो, न भावतः १ मूच्छितस्य तदसम्पत्त्या भावतो न द्रव्यतः २ सम्पत्या द्रव्यतो भावतश्च ३ तुर्यः शून्यः ४॥ जं मए इमस्स धम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स अहिंसालक्खणस्स सञ्चाहिटियस्स विणयमूलस्स खंतिप्पहाणस्स अहिरन्नसोवणियस्स उवसमप्पभवस्स नवयंभचेरगुत्तस्स अपयमाणस्स भिक्खावित्तिस्स कुक्खीसंथलस्स निरग्गिसरणस्स संपक्खालियस्स चत्तदोसस्स गुणगाहिस्स निधियारस्स निवित्तिलक्खणस्स पंचमहव्वयजुत्तस्स असंनिहिसंचियस्म अविसंवाइयस्स संसारपारगामिस्स निबाणगमणपजवसाणफलस्स पुविं AC-%A5AMACACANCHAR Jain Education International For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org

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