Book Title: Khamansutta Pakkhiyasutta Khamangasuttani Savchuriyai
Author(s): Purvacharya, Lalitangvijayji
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 77
________________ पाक्षिकसूत्रं ******** आईकतेमनादी, कषाये वल्लादी, अम्ले तक्रारनालादी, मधुरे श्रीरध्यादी, लवणो प्रकृतिक्षारे तथाविधजलशाकादौ, लवणोत्कटे | | अवचूरिवाऽन्यस्मिन् द्रव्ये। द्रव्यादिचतुझी पुनरिय, तत्रानुगत इति, अस्तमिते मूर्येऽनस्तमित इति मत्याऽरक्तद्विष्टस्य कारणे रात्री भुवन्तो-1 समलंकृतम् द्रव्यतो, नो भावतः १ । रात्रौ भुनामीति मूञ्छितस्य तदसंपत्या भावतो, न द्रव्यतः २। संपत्त्या द्रव्यतो भावतश्च ३। तूर्यः शून्यः ४। जं मए इमस्स धम्मस्स केवलिपण्णत्तस्स अहिंसालक्खणस्स सचाहिट्ठियस्स विणयमूलस्स खंतिप्पहाणस्स अहिरण्णसोवन्नियस्स उवसमप्पभवस्स नवबंभचेरगुत्तस्स अपयमाणस्स भिक्खावित्तिस्स कुक्तीसंबलस्स निरग्गिसरणस्स संपक्खालियस्स चत्तदोसस्स गुणगाहियस्स निम्वियारस्स निवित्तिलक्खणस्स पंचमहवयजुत्तस्स असंनिहिसंचयस्स अविसंवाइयस्स संसारपारगामिअस्स निव्वाणगमणपज्जवसाणफलस्स पुश्विं अन्नाणयाए असवणयाए अयोहिए अणभिगमेणं अभिगमेण वा पमाएणं रागदोसपडिबद्धयाए बालयाए मोहयाए मंदयाए किड्डयाए तिगारवगरुयाए चउकसाओवगएणं पंचिंदिओवसद्देणं पडुप्पन्नभारियाए सायासोक्खमणुपालयंतेणं इह वा भवे अन्नेसु वा भवग्गहणेमु राईभोयणं मुंजियं वा भुंजावियं वा भुंजन्तं वा परेहिं समणुन्नायं तं निंदामि गरिहामि तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं अइअं निंदामि पडुप्पन्नं संवरेमि अणागयं पञ्चक्खामि सवं राइभोयणं जावज्जीवाए अणिस्सिओहं नेव सयं राई भुंजेजा नेवन्नेहिं राई भुंजावेज्जा राई भुंजंते वि अन्ने न समणुजाणामि, में जहा-अरिहंतसक्खियं, सिद्धसक्खियं, साहुसक्खियं, देवसक्खियं, ************ ॥४९॥ Jain Education inte For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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