Book Title: Khamansutta Pakkhiyasutta Khamangasuttani Savchuriyai
Author(s): Purvacharya, Lalitangvijayji
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ एवमहं आलोइअ, निंदिअ गरहिअ दुगंछिअं सम्म । तिविहेण पडिक्कतो, वंदामि जिणे चउव्वीसं ॥२॥ भमणस्त्रम् अवचूरिसमलंकृतम् ॥२२॥ ॥ श्रीश्रमणसूत्रं समाप्तं ॥ पवमहमालोच्य, निन्दित्वा गर्हयित्वा दुर्गछिकं सम्यक् । त्रिविधेन प्रतिक्रमन् वन्दे जिनान् चतुर्विंशतिम् ॥ २ ॥ एवं देवसिकप्रतिक्रमणमुक्त, एवं रात्रिकमपि, न वरं यत्र देवसिकातिचारः प्रोक्ताः, तत्र रात्रिकातिचारो वक्तव्यः, ननु रात्रिप्रतिक्रमणे गोचरचर्यासूत्र अनर्थकम, रात्री असंभवात् अदोषः । श्रीश्रमणसूत्रावचूरिः समाप्ता ॥ EKCARRRRRRRRRRRR EXPLORESORRRRRRRRERece ॥ श्रीश्रमणसूत्रावरिः समाप्ता ॥ = == = = = Jan Educh an international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120