Book Title: Khamansutta Pakkhiyasutta Khamangasuttani Savchuriyai
Author(s): Purvacharya, Lalitangvijayji
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 41
________________ अवचूरिसमलंकृतम् इकवीसाए सवलेहिं ॥ २२ ॥ धमणसूत्रम् एकविंशत्या शबलैः क्रिया विशेषैः, चारित्रशबलतानिमित्तैः, कलुषताहेतुभिरित्यर्थः ॥ हस्तकर्म कुर्वन् (१) सालंबनदिव्यादिमैथुनसेंवमानः (२) सालंबनरात्रिभोजन (३) आधाकर्मभुक्ति (४) राजपिंड (५) क्रीत (६) प्रामित्य (७) अभ्याहृत ४(८) आछेद्यभुक्ति (१ ) प्रत्याख्यातभक्तभोजनतः ( १० ) षण्मासमध्ये गणाद्गणसंक्रमं कुर्वन ( ११ ) मासांतस्त्रीनुदकलेलापान कुर्वाणः (१२) मासांतस्त्रीणि मातृस्थाना ने कुर्वन् (१३) उपेत्य पृथ्व्यादि प्राणिनो हिंसन् ( १४ ) मृषावदन (१५) अदत्तं गृहन (१६) अशुद्धपृथ्यां स्थानादि कुर्वन् (१७) आकुट्या मूलफलादिभोजी (१८) वर्षांतर्दशोदकलेपान् कुर्वन् ( १९) वर्षांतर्दश च मातृस्थानानि कुर्वाणः (२०) शीतोदकसंसृष्टहस्तमात्रदत्तभक्तभोजी ( २१) शवल इति सर्वत्र | योज्यं ॥ २२ ॥ बावीसाए परीसहेहिं ॥ २३ ॥ द्वाविंशत्या परीषदः, क्षुत् (१) पिपासा (२) शीत (३) उष्ण (४) दंशमशक (५) अचेल (६) अरति (७) स्त्री (८) मासकल्पाविहारचर्या (१) निषद्या (१०) शय्या (११) आक्रोश (१२) बध ( १३ ) यांचा ( १४ ) अलाभ (१५ ) रोग ( १६ ) तृण स्पर्श (१७) मल ( १८ ) सत्कार (१९) प्रशा ( २० ) अशान (२१) सम्यक्त्व ( २२ ) रूपैः॥ २३ ॥ | तेवीसाए सुअगडझयणेहिं । चउवीसाए देवेहिं (अरिहंतेहिं)। पणवीसाए भावणाहिं । छब्बीसाए दसाकप्पव Jain Education Inteman For Private Personel Use Only

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