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है। उनकी यह कृति न केवल पाठकों को ध्यान और कायोत्सर्ग की साधना के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान करेगी, अपितु उन्हें ध्यान और कायोत्सर्ग की साधना के लिये प्रेरित कर आत्म-उपलब्धि का व्यावहारिक मार्ग भी प्रस्तुत करेगी। वे इसी प्रकार अपने सम्यग्ज्ञान और सम्यक् साधना के द्वारा जन-जन का मार्गदर्शन करते रहें, यही अपेक्षा है।
शाजापुर श्रावण पूर्णिमा 18-8-2005
डॉ. सागरमल जैन संस्थापक निदेशक
प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर (मध्यप्रदेश)
22 कायोत्सर्ग
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