Book Title: Kayotsarga
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 22
________________ है। वह पूर्णतया समुचित है। मैं उनके इस कथन से भी पूर्णतः सहमत हैं कि कायोत्सर्ग मात्र शरीर का शिथिलीकरण नहीं है, वह कर्म-निर्जरा के माध्यम से वीतरागता की उपलब्धि का प्रयत्न या पुरुषार्थ है। इस प्रकार यही सिद्ध होता है कि समत्व की उपलब्धि ही ध्यान और कायोत्सर्ग की साधना का मूलभूत लक्ष्य है। आदरणीय लोढ़ाजी ने जो कहा है कि ध्यान कायोत्सर्ग तक पहुँचने की प्रक्रिया या पद्धति है-उनका यह कथन शत-प्रतिशत सत्य है, क्योंकि ध्यान अर्थात् योगों की चंचलता को समाप्त कर कायोत्सर्ग अर्थात् निर्ममत्व की साधना से ही वीतरागता की उपलब्धि सम्भव है। ध्यान साधना के क्षेत्र में आसन और प्राणायाम की भूमिका मात्र इतनी ही है कि आसन कायस्थिरता को साधने का उपाय है तो प्राणायाम वचन के मौन और मन की एकाग्रता को साधने का उपाय है। इस प्रकार आसन, प्राणायाम, ध्यान और कायोत्सर्ग या व्युत्सर्ग में एक सह-सम्बन्ध है। साथ ही उनमें क्रम भी है। उस क्रम में आसन प्रथम अंग है और कायोत्सर्ग अन्तिम है। कृति के अन्त में ध्यान व कायोत्सर्ग को दुःख-विमुक्ति का उपाय कहा गया है वह व्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक, दोनों ही दृष्टियों से समुचित है, क्योंकि समस्त दु:खों का जन्म ममत्व वृत्ति के कारण ही होता है। जिन-जिन वस्तुओं और व्यक्तियों पर हम ममत्व का आरोपण करते हैं, उनके साथ घटने वाली घटनाएँ ही हमारे दु:ख का कारण होती हैं। दु:ख-विमुक्ति प्रत्येक प्राणी का लक्ष्य होता है, किन्तु जब तक दु:खों के मूल कारण आसक्ति का उच्छेद नहीं होता, तब तक दुःख-विमुक्ति सम्भव नहीं है। ध्यान और कायोत्सर्ग की साधना ममत्व वृत्ति के उच्छेद के द्वारा हमें दु:खों से मुक्त करती है और यही ध्यान व कायोत्सर्ग की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। ध्यान अर्थात् आत्म-सजगता के बिना कायोत्सर्ग सम्भव नहीं होता है। पुन: ध्यान हेतु भी कषायों का उपशान्त होना आवश्यक है, किन्तु कषायों को उपशान्त करने के लिए व्युत्सर्ग अर्थात् ममत्व वृत्ति का त्याग आवश्यक है। अतः ध्यान के बिना कायोत्सर्ग और कायोत्सर्ग के बिना ध्यान सम्भव नहीं हैं। प्रस्तुत कृति में आदरणीय कन्हैयालालजी लोढ़ा की ये प्रस्थापनाएँ न केवल आगमिक या शास्त्रीय आधार पर खड़ी हुई हैं, अपितु उनके पीछे एक मनोवैज्ञानिक दृष्टि रही हई है। उन्होंने ध्यान और कायोत्सर्ग की साधना के व्यावहारिक पक्ष और उनकी उपादेयता को भी सम्यक् रूप से प्रस्थापित किया भूमिका 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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