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कायोत्सर्ग से लाभ
ध्यान की चरम परिणति कायोत्सर्ग में होती है । कायोत्सर्ग से शरीर, संसार व कषाय का व्युत्सर्ग होता है ।
1. शरीर - व्युत्सर्ग से देहातीत अवस्था का, अमरत्व का अनुभव होता है । 2. संसार - व्युत्सर्ग से लोकातीत, अलौकिक, परमानन्द का अनुभव होता है ।
3. कषाय व कर्म - व्युत्सर्ग से निर्दोषता का, मुक्ति का, स्वाधीनता का अनुभव होता है जिससे अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन (चिन्मयता ), पूर्ण निर्दोषता, ( यथाख्यात चारित्र), क्षायिक सम्यक्त्व, अनन्त उदारता (दान), अनन्त ऐश्वर्य (लाभ), अनन्त सौन्दर्य (भोग), अनन्त माधुर्य (उपभोग), अनन्त सामर्थ्य (वीर्य) की लब्धि होती है ।
असंप्रज्ञात समाधि में निज-स्वरूप की अनुभूति होती है ।
जैसे गेहूँ की खेती से गेहूँ प्राप्ति के मुख्य लाभ के साथ भूसे का लाभ स्वतः होता है । इसी प्रकार ध्यान - कायोत्सर्ग साधना से अमरत्व, स्वाधीनता, चिन्मयता, पूर्णता आदि आध्यात्मिक मुख्य लाभ प्राप्ति के साथ शारीरिक, मानसिक, लौकिक लाभ स्वतः प्राप्त होते हैं, यथा
1. शारीरिक लाभ-ध्यान से शरीर को यथेष्ट वास्तविक विश्राम मिलता है-. (1). क्लान्ति ( थकावट ) दूर होती है ।
( 2 ). शक्ति का संचय होता है।
( 3 ). रक्तचाप, माइग्रेन, हृदय रोग आदि प्रायः सभी रोगों के प्रतिरोध की क्षमता बढ़ती है व रोगों का क्षय होता है।
(4) कार्य करने की क्षमता बढ़ती है ।
2. मानसिक लाभ
(1) चित्त स्थिर व शान्त होता है । मन से मुक्ति मिलती है। अमन की अनुभूति होती है ।
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कायोत्सर्ग से लाभ
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