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कायोत्सर्ग : दुःख-विमुक्ति का उपाय
उत्तराध्ययन सूत्र के छब्बीसवें अध्ययन सामाचारी की सैंतालीसवीं गाथा में कायोत्सर्ग को सर्वदुःखों से मुक्त करने वाला कहा है, यथा
आगए काय-वोसग्गे, सव्व दुक्ख विसोक्खणे।
काउसग्गं तओ कुज्जा, सव्व दुक्ख विमोक्खणं ।। सर्वदुःखों से छुटकारा दिलाने वाले कायोत्सर्ग का समय आने पर सर्वदुःखों से विमुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे। इसी अध्ययन में गाथा 38, 42 और 50 में कायोत्सर्ग को सर्वदुःखों से छुटकारा करने वाला कहा है।
दुःख किसी को भी पसंद नहीं है। दुःख उसी को भोगना पड़ता है जो विषय-सुख का भोगी है। अतः दुःख से छूटने का एक ही उपाय है कि सुख-भोग का त्याग करें। अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि यदि सुख का त्याग कर दें तो फिर जीवित रहने का अर्थ ही क्या रह जाता है। क्योंकि सुख-रहित जीवन किसी को भी इष्ट नहीं है। सुख के बिना जीवन व्यर्थ है। अतः हमें सुख चाहिये। __इस प्रकार दो स्थितियाँ हमारे सामने हैं। एक तो यह है कि सुख के भोगी को दुःख भोगना पड़ता है और हमें दुःख पसंद नहीं है। और दूसरी यह है कि यदि हम सुख को त्याग दें तो सुख-रहित जीवन भी हमें पसन्द नहीं है। अतः जिज्ञासा होती है कि ऐसी दुविधामय स्थिति से छुटकारा कैसे मिले? इसका समाधान यही हो सकता है कि हमें ऐसा सुख मिले जो दुःखरहित हो।
दुःखरहित सुख प्राप्ति के लिये सुख पर विचार करना होगा। सुख दो प्रकार के हैं-एक है इन्द्रिय भोग से प्राप्त विषय-सुख जैसे इष्ट पदार्थ का मिलना, खाना, पीना, पहनना, सूंघना, देखना आदि से मिलने वाला इन्द्रिय सुख
और दूसरा सुख है शान्ति, समता, मैत्री, उदारता, स्वाधीनता आदि गुणों से मिलने का रस या सुख । जब चित्त शान्त होता है तो उसका अपना एक रस है, सुख है। जब हम सेवा द्वारा किसी का दुःख दूर करते हैं जिससे उसे जो सुख होता है, प्रसन्नता होती है, उससे हमें भी प्रमोद होता है, प्रीति होती है। यह भी एक सुख है। संसार और शरीर से असंग होने से स्वाधीनता का, मुक्ति का जो अनुभव होता है उसका भी अपना सुख है। 84 कायोत्सर्ग
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