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कायोत्सर्ग और आसन-प्राणायाम
__कायोत्सर्ग व ध्यान एवं योग का मुख्य उद्देश्य दोषों व दुःखों से मुक्ति पाना है, वर्तमान में ध्यान और योग ने चिकित्सा का रूप ले लिया है। लोग ध्यान व योग के प्रति इसलिये आकृष्ट हो रहे हैं कि इनसे उनका मानसिक तनाव, हीनभाव, अशान्ति और असन्तोष कम हो जायें अथवा माइग्रेन, रक्तचाप, हृदयरोग आदि शारीरिक रोग मिट जायें। ध्यान और योग से मानसिक एवं शारीरिक रोग दूर होते हैं, यह प्रत्यक्ष देखने में आता है, किन्तु ध्यान व योग का मुख्य उद्देश्य भोगासक्ति से मुक्त होना है, अतः ध्यान भोगासक्ति बढ़ाने का साधन नहीं होना चाहिए। योग का उद्देश्य ही भोगों से मुक्त होना है। जहाँ भोग है वहाँ योग नहीं । भोगजन्य कामना, वासना, ममता, अहंता को बनाये रखना और इनके परिणाम से होने वाले अभाव, तनाव, हीनभाव, चिन्ता, भय, असुरक्षा, पराधीनता, अन्तर्द्वन्द्व, अशान्ति आदि दुःखों से बचने की आशा रखना भयंकर भूल है। आसन-प्राणायाम करते समय कुछ काल के लिए भले ही वे दुःख कुछ कम हो जायें, दब जायें, परन्तु कुछ काल पश्चात् ही ये सब दुःख पीड़ित कर ही देते हैं। मन का किसी श्रम-साध्य प्रयोग से कुछ काल के लिए निष्क्रिय हो जाना योग नहीं है।
_ आसन, मुद्रा, प्राणायाम आदि के द्वारा शारीरिक और मानसिक रोगों का निवारण होता है और शारीरिक तथा मानसिक स्वस्थता आती है, अतः आसन, प्राणायाम आदि चिकित्सा का काम करते हैं। इस चिकित्सा के Side Effect नहीं होते हैं और धन भी कम व्यय होता है। इस दृष्टि से यह चिकित्सा पद्धति अन्य चिकित्सा पद्धतियों से श्रेष्ठ एवं आदरणीय है। शारीरिक व मानसिक रोग निवारण का कार्य चिकित्सालयों में विविध पद्धतियों से हो रहा है, परन्तु इससे वे चिकित्सालय योग केन्द्र, ध्यान केन्द्र नहीं कहे जा सकते। शारीरिक व मानसिक स्वस्थता योग नहीं है। यदि शारीरिक, मानसिक स्वस्थता की उपलब्धि को योग माना जाय तो हम सब व जितने भी स्वस्थ मनुष्य हैं, वे सभी योगी कहें जायेंगे, परन्तु उन्हें कोई योगी नहीं कहता, क्योंकि उनका लक्ष्य भोग है। उनकी प्रवृत्ति, निवृत्ति व प्रत्येक क्रिया भोग के लिए है, अतः वे भोगी हैं, योगी नहीं। योगी वह है जो भोगी नहीं है और योग वह है जिसका लक्ष्य भोगों को त्यागना है, जो
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