Book Title: Kayotsarga
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 119
________________ कायोत्सर्ग-सूत्र विउसग्गसरूवं सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे। कायस्स विउस्सग्गो, छट्ठो सो परिकित्तिओ।। -उत्त., अ. 30, गाथा 36 व्युत्सर्ग का स्वरूप. सोने, बैठने या खड़े रहने के समय जो भिक्षु शरीर की बाह्य प्रवृत्ति नहीं करता है। उसके काया की चेष्टा का जो परित्याग होता है, उसे व्युत्सर्ग कहा जाता है। वह आभ्यन्तर तप का छठा प्रकार है। भगवती सूत्र, शतक 25, उद्देशक 7 के अनुसार व्युत्सर्ग के भेद हैं : विउसग्गस्स भेयप्पभेया प्र.- से किं तं विओसग्गे? उ.- विओसग्गे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा 1. दव्वविओसग्गे, 2. भावविओसग्गे य। प्र.- व्युत्सर्ग क्या है? उसके कितने भेद हैं? उ.- व्युत्सर्ग के दो भेद बतलाये गये हैं, यथा___ 1. द्रव्य-व्युत्सर्ग, 2. भाव-व्युत्सर्ग। प्र.- से किं तं दव्वविओसग्गे? उ.- दव्वविओसग्गे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा 1. गणविओसग्गे, 2. सरीरविओसग्गे, 3. उवहिविओसग्गे। 4. भत्तपाणविओसग्गे। से त्तं दव्वविओसग्गे। 118 कायोत्सर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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