Book Title: Kayotsarga
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ हैं। ऐसे स्थान योग-साधना केन्द्र नहीं हैं, बल्कि शारीरिक और मानसिक रोग निवारण के चिकित्सालय कहे जाने चाहिए। तात्पर्य यह है कि जिन साधकों का लक्ष्य दोषों, पापों, विषय-भोगों, परिग्रह को त्यागना, निर्वाण-कैवल्य, चिन्मय जीवन प्राप्त करना है, जो यमनियम का, शील-सदाचार का पालन करते हैं, वे ही योग के अधिकारी होते हैं। जो शारीरिक पुष्टि, मानसिक तुष्टि व रोग निवारण के लिए आसनशिथिलीकरण (शवासन) और प्राणायाम करते हैं, उन्हें अन्य कुछ भी कहा जाय, किन्तु वे योग नहीं हैं। कर्तृत्व भाव से किए गए कृत्रिम आसन, प्राणायाम आदि कायोत्सर्ग, व्युत्सर्ग, समाधि में बाधक हैं क्योंकि वे प्रवृत्ति व पराश्रय पर निर्भर हैं। ___ आसन करने से शक्ति का व्यय होता है अतः थकान होती है। उस थकान को मिटाकर शक्ति का संचय करने के लिए शवासन का विधान है। शवासन हैजैसे शव-मुर्दा शरीर अपनी ओर से किसी प्रकार की हलचल नहीं करता है, शिथिल तथा तनावरहित होकर स्थिर पड़ा रहता है, उसी प्रकार तनावरहित होकर शरीर को पूरा ढीला छोड़ देना किसी प्रकार की क्रिया न करना, शिथिल कर देना शवासन है। शवासन का ही रूपान्तर शिथिलीकरण है। प्रतिदिन निद्रा के आने के पूर्व शिथिलीकरण होता है। यदि शिथिलीकरण नहीं हो तो निद्रा आ ही नहीं सकती। निद्रा के पूर्व यह शिथिलीकरण सभी प्राणियों को होता है। यदि इसे कायोत्सर्ग कहा जाय तो सभी मनुष्य, पशु-पक्षी प्रतिदिन कायोत्सर्ग करते हैं। आशय यह है कि कायोत्सर्ग में शरीर में स्वतः होने वाले स्थिरीकरण का महत्त्व है, प्रयत्न पूर्वक किए गए आसन-प्राणायाम आदि शरीर के स्थिरीकरण में बाधक हैं। यदि शरीर के शिथिलीकरण को कायोत्सर्ग माना जाय तो प्रत्येक शारीरिक क्रिया में ऊर्जा (शक्ति) का ह्रास, क्षय होता है जिससे शरीर में शक्तिहीनता आती है और शरीर अशक्त हो स्वतःशिथिल हो जाता है। प्राणी मात्र की प्रत्येक प्रवृत्ति का अन्त स्वतःशिथिलता में होता है। उस शिथिलता में शक्ति का संचय होता है जिससे पुनः प्रवृत्ति करता है। इस प्रकार प्रत्येक प्राणी को दिन में अनेक बार शिथिलीकरण होता है। चलते-चलते व कार्य करतेकरते थक जाने पर शरीर स्वतः शिथिल हो जाता है। माइण्ड मशीन से शिथिल हो जाता है। अगर शिथिलीकरण को कायोत्सर्ग माना जाय तो इन सब शिथिलीकरण अवस्थाओं को कायोत्सर्ग मानना होगा। ये सब जड़ता की अवस्थाएँ हैं अतः इनको कायोत्सर्ग नहीं कहा जा सकता है। तात्पर्य यह है कि 116 कायोत्सर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132