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जैसाकि ऊपर कहा है कि आत्म-निर्देशन, आत्म-सम्मोहन द्वारा किया गया शिथिलीकरण कायोत्सर्ग नहीं है, शवासन है। आसन का ही एक प्रकार है। यह तनाव व तनावजन्य थकावट, शक्तिहीनता को दूर करने की, विश्रान्ति प्राप्त करने की एक प्रक्रिया है, जैसे कोई भी व्यक्ति चलते-चलते मांसपेशियों की शक्ति क्षीण होने से थकने पर बैठकर विश्राम लेता है। यह विश्राम लेना भी शिथिलीकरण ही है। दिनभर शारीरिक व मानसिक श्रम करने से उत्पन्न शक्तिहीनता, थकावट को दूर करने के लिए निद्रा लेता है, यह पूर्ण शिथिलीकरण है। शिथिलीकरण के बिना निद्रा सम्भव नहीं है। यदि शरीर की क्रिया बन्दकर विश्राम देने रूप शिथिलीकरण को कायोत्सर्ग कहा जाय तो निद्रा भी कायोत्सर्ग ही कही जायेगी।
जैन धर्म में कायोत्सर्ग के छह आवश्यक कहे हैं, इसमें कायोत्सर्ग पाँचवाँ आवश्यक है, प्रथम आवश्यक सामायिक है। शिथिलीकरण में सामायिक आवश्यक नहीं होता है, तब पाँचवाँ आवश्यक कायोत्सर्ग होना कैसे सम्भव है? कदापि सम्भव नहीं।
मन, वचन और काया का स्थिर-स्वस्थ-स्व में स्थित होना कायोत्सर्ग है। इसे ही समाधि कहा जाता है। जैन धर्म में समाधि या कायोत्सर्ग उत्कृष्ट साधना है, पातंजल योग दर्शन में समाधि योग की अन्तिम, चरम, परम अवस्था है। जबकि शिथिलीकरण साधना की प्रथम स्थिति से पूर्व की अवस्था है। अतः शिथिलीकरण को कायोत्सर्ग या समाधि कहना उपयुक्त नहीं है।
कायोत्सर्ग या समाधि के लिए सर्वप्रथम यम और नियम का पालन करना अनिवार्य है। यम हैं हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह का त्याग करना जबकि शिथिलीकरण की प्रक्रिया के लिए इनकी अनिवार्यता व आवश्यकता अपेक्षित नहीं है।
यम-नियम है-विषय-सुखों को दुःख का कारण जानकर उनका त्याग कर अपने को पवित्र बनाना, परन्तु शिथिलीकरण क्रिया का उद्देश्य है शरीर और मन को स्वस्थ व सबल करना। कायोत्सर्ग व समाधि के साधक के लिए इन यमनियमों का सर्वप्रथम पालन करना जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन एवं योग-दर्शन, इन सब में समान रूप से अनिवार्य बताया है परन्तु वर्तमान में तथाकथित ध्यानयोग-साधना केन्द्रों में इस पर पर्याप्त जोर नहीं दिया जाता है, अतः जहाँ यमनियम के पालन पर बल दिये बिना, दोषों और विषय-भोगों के त्याग को लक्ष्य बनाये बिना किए गए आसन-शिथिलीकरण (शवासन), प्राणायाम कराये जाते
कायोत्सर्ग और शिथिलीकरण 115
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