________________
काउसग्ग फलं
प्र.- काउस्सग्गेणं भन्ते! जीवे किं जणयइ ?
उ.- काउसग्गेणं तीयपडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ । विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वुयहियए ओहरियभारो व्व भारवहे पसत्थज्झावणोवगाए सुहंसुहेणं विहरइ। -उत्त., अ. 29, सूत्र 14
प्र.- भन्ते! कायोत्सर्ग (ध्यान की मुद्रा) से जीव क्या प्राप्त करता है?
उ.- कायोत्सर्ग से वह अतीत और वर्तमान के प्रायश्चित्त योग्य कार्यों का विशोधन करता है। ऐसा करने वाला व्यक्ति भार को नीचे रख देने वाले भारवाहक की भाँति स्वस्थ हृदय वाला हो जाता है और प्रशस्त ध्यान में लीन होकर सुखपूर्वक विचरण करता है।
आगए कायवोसग्गे, सव्वदुक्खविमोक्खणे। काउसग्गं तओ कुञ्जा, सव्वदुक्ख विमोक्खणं ।।47।।
उत्तराध्ययन, अध्ययन 26 सर्वदुःखों से मुक्त कराने वाले कायोत्सर्ग का समय आने पर सर्वदुःखों से छुड़ाने वाला कायोत्सर्ग करे।
आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय, पाँचवीं-छठी शताब्दी) की कृति 'आवश्यक नियुक्ति' से चयनित गाथाएँ :
अट्ठविहं पि य कम्मं अरिभूयं तेण तज्जयट्ठाए।
अब्भुट्ठिया उ तवसंजमं च कुव्वंति निग्गंथा। आठों प्रकार के कर्म आत्मा के लिए शत्रु के समान हैं, अतः उन पर विजय पाने के लिए निर्ग्रन्थ कटिबद्ध हैं और वे तप तथा संयम में रत हैं।
तस्स कसाया चत्तारि नायगा कम्मसत्तुसेन्नस्स।
काउसग्गमभंगं करेंति तो तज्जयट्ठाए। उस कर्मरूपी शत्रु-सेना के चार नायक हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ । वे कायोत्सर्ग में बाधा उपस्थित करते हैं, अतः उनको जीतने के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
देहमइजड्डसुद्धी सुहदुक्खतितिक्खया अणुप्पेहा।
झायइ य सुहं झाणं एगग्गो काउस्सग्गम्मि। कायोत्सर्ग से ये लाभ प्राप्त होते हैं
1. देहजाड्यशुद्धि- दोषों के क्षीण होने से देह की जड़ता का नाश । 122 कायोत्सर्ग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org