Book Title: Kayotsarga
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 122
________________ 5. आउयकम्मविओसग्गे, 6. णामकम्मविओसग्गे, 7. गोयकम्मविओसग्गे, 8. अंतरायकम्मविओसग्गे। से तं कम्मविओसग्गे, से तं भावविओसग्गे।' प्र.- कर्म-व्युत्सर्ग क्या है? वह कितने प्रकार का है? उ.- कर्म-व्युत्सर्ग आठ प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है 1. ज्ञानावरणीय कर्ण-व्युत्सर्ग-(आत्मा के ज्ञान गुण के आवरक कर्मपुद्गलों के बँधने के कारणों का, ज्ञान के अनादर का त्याग) 2. दर्शनावरणीय कर्म-व्युत्सर्ग-(आत्मा के दर्शन (सामान्य ज्ञान गुण) के आवरक कर्म पुद्गलों के बँधने के कारणों का त्याग।) 3. वेदनीय कर्म-व्युत्सर्ग-(साता-असाता दुःखरूप वेदना के हेतुभूत पुद्गलों के बँधने के कारणों का त्याग । सुख-दुःखात्मक अनुकूल-प्रतिकूल वेदन में आत्म को तद्-अभिन्न मानने का उत्सर्जन ।) 4. मोहनीय कर्म-व्युत्सग-(आत्मा के स्वप्रतीति-स्वानुभूति स्वभाव रमण रूप गुण के आवरक कर्म-पुद्गलों के बँधने के कारणों का त्याग।) ____5. आयुष्य कर्म-व्युत्सर्ग-(किसी भव में पर्याय में रोक रखने वाले आयुष्यकर्म के पुद्गलों के बँधने के कारणों का त्याग।) 6. नामकर्म-व्युत्सर्ग-(आत्मा के अमूर्तत्व गुण के आवरक कर्म पुद्गलों के बँधने के कारणों का त्याग ।) 7. गोत्र-कर्म-व्युत्सर्ग-(आत्मा के अगुरुलघुत्व (न भारीपन न हलकापन) रूप गुण के आवरक कर्म-पुद्गलों के बँधने के कारणों का त्याग।) 8. अन्तराय-कर्म-व्युत्सर्ग-(आत्मा के शक्ति रूप गुण के आवरक (अवरोध) कर्म-पुद्गलों के बँधने के कारणों का त्याग।) यह कर्म-व्युत्सर्ग है। इसी प्रकार भाव-व्युत्सर्ग का विवेचन है। 1. उव. सु. 30 कायोत्सर्ग-सूत्र 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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