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कातन्त्रव्याकरणम्
३५-४८
५. नित्य सम्प्रसारण तथा स्वरसहित यकारादि वर्गों का सम्प्रसारण २६-३५
[ हृञ् धातु को नित्य सम्प्रसारण, 'जुहाव' आदि में स्वरसहित वकार आदि को सम्प्रसारण, सम्प्रसारण के रहने पर पूर्ववर्ती का सम्प्रसारणनिषेध तथा इङ्गित आदि से आचार्यों के अभिप्राय का परिज्ञान ]
६. एकारादि को आकारादेश
[ सन्ध्यक्षरान्त धातु के अन्तिम वर्ण, दीङ् आदि धातुओं को आकारादेश, व्यञ् धातु को आकारादेश का निषेध, अन्त शब्द का अर्थ है- अवयव, अन्तग्रहण सुखार्थ, भट्टि-हेम-वररुचि-न्यासकार-पदकार आदि आचार्यों के विविध अभिमत तथा निपातउपसर्ग-धातुओं की अनेकार्थकता ]
७. अकार-यकार आगमादि तथा 'हि' आदि का लोप ४८.८२
[ सृज्-दृश् धातुओं में अकारागम, दीङ् धातु में यकारागम, धातुगत आकार का लोप, आकार को ईकारादेश, आकार को एकार, अन् को उस्, त-हि-उ-अ-आ-न् का लोप तथा योगविभागार्थ-सुखार्थ-उच्चारणार्थ-स्पष्टार्थ-असन्दिग्धार्थ-वैचित्र्यार्थ-सम्भवदर्शनार्थ कुछ विषयों का उपस्थापन ]
८. उपधा को इत्, जकार-एकार-इय्-उव् आदि आदेश ८२-१२७
[ शास् धातु की उपधा को इत्, हन् को ज, एत्त्व-अभ्यासलोप, शस् आदि धातुओं में एत्त्व-अभ्यासलोप का निषेध, इवर्ण को इय, उवर्ण को उव, यकार-वकारऊकार आदेश, स्वरवद्भाव, ईकार-इकार आगम, समस्तलोपार्थ-सुखप्रतिपत्त्यर्थ-सुखार्थअनुक्तसमुच्चयार्थ-मन्दमतिबोधार्थ-उत्तरार्थ-स्पष्टार्थ-अनिर्दिष्टार्थ-सम्भवदर्शनार्थ-वैचित्र्यार्थश्रुतिसुखार्थ कुछ विषयों का उपस्थापन तथा शर्ववर्मा आदि आचार्यों के विविध मत ] ९. घस्ल-वयि-वध-गा आदि आदेश
१२७-१५० [अद् को घस्ल, वेञ् को वयि, हन् को वध्, इण् को गा, इङ् को गा, इण्-इङ् को गमि, अस् को भू, ब्रू को वच्, चक्षिङ् को ख्याञ्, अज को वी आदेश, अन् विकरण-सिच् प्रत्यय का लोप, सौत्र घस् धातु, उच्चारणार्थ-अनुषङ्गार्थ-श्रुतिसुखार्थस्वरूपग्राहकार्थ-उपलक्षणार्थ-अभिधानार्थ-प्रयोगनिरासार्थ-लाघवार्थ-इष्टसिद्ध्यर्थ-वैचित्र्यार्थ कुछ विषयों का उपस्थापन, टीकाकार-भट्टि-कश्चित् -एके आदि आचार्यों के विविध अभिमतों का परिचय, मरक् प्रत्यय के विषय में घस्ल सौत्र धातु, इक्-अ-श्तिप् प्रत्ययों