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कर २१ वें जन्म में वे पुनः ४ थी नरक में गए । पुनः ४ थी नरक से कालावधि समाप्त करके २२ वें जन्म में मनुष्य गति में आए ।
भगवान महावीर के दृष्टांत से यह अच्छी तरह देख सकते हैं कि दोनों बार नरक गति से निकलकर सीधे नारकी नहीं बने परन्तु तिर्यंच और मनुष्य गति में गए हैं । अतः यह शाश्वात नियम है कि नरक गति का नारकी जीव मृत्यु के पश्चात सिर्फ मनुष्य और तिर्यंच की दो गति में ही जाता है । उसी तरह देव भी मृत्यु के पश्चात् तिर्यंच और मनुष्य की इन दो ही गति में आता है । देव और नारक इन दोनों के लिए तो ये दो गतियां हुई । सिर्फ मनुष्य और तिर्यंच । इसमें भी ऐसा नियम है कि ९८ % जीव तो तिर्यंच गति में ही जाते हैं । चूं कि तिर्यंच गति बड़ी लम्बी चौड़ी है। एकेन्द्रिय से लगाकर पंचेन्द्रिय तक के सभी इन्द्रियों वाले जीव-तिर्यंच गति में है । अतः तिर्यंच गति में अनंत की संख्या में जीव राशि है। एकेन्द्रिय के पांचों स्थावर पृथ्वीकाय, अप्काय (पानी के जीव), तेउकाय (अग्नि के जीव), वायुकाय एवं वनस्पतिकाय ये सभी एवं दो इन्द्रिय वाले कृमि, कीड़े, आदि तथा तेइन्द्रिय में चींटी, मकोड़े आदि चउरिन्द्रिय में मक्खी, मच्छर आदि पंचेन्द्रिय में जलचर मछलियां आदि, स्थलचर में हाथी, घोड़े, बैल-बकरियां आदि एवं खेचर में कौआ,तोता, मैंनादि इन सबकी गिनती गति के दृष्टिकोण से तिर्यंच गति में ही होती है । अतः संख्या की दृष्टि से यह तिर्यंच गति बहुत बड़ी है। इसमें अनंत की संख्या में ही जीव राशि है। जबकि संख्याकी दृष्टि से मनुष्य की गति में चारों गति की तुलना में बहुत ही कम संख्या है। अतः मनुष्य गति में सबसे छोटी है। तिर्यंच गति में जीवों की संख्या अनंत है। देवगति और नरक गति में जीवों की संख्या असंख्य की है। जबकि मनुष्य गति में जीवों की संख्या बहुत ही कम सिर्फ संख्यात है । वह भी समस्त वर्तमान विश्व ही नहीं अपितु ढ़ाई ब्दीप के सम्पूर्ण क्षेत्र के सभी मनुष्यों की संख्या भी देखी जाय तो सर्वज्ञ भगवंतो ने बताया कि सर्वोत्कृष्ट मनुष्यों की संख्या (२)" ही हो सकती है। (२) अर्थात् २९ अंक वाली संख्या यही उत्कृष्ट संख्या मनुष्य गति के समस्त मनुष्यों की हो सकती है। यह केवल संख्यात की गिनती में आती है जबकि इतनी भी संख्या कभी पूरी हो नहीं पाई है। अतः मनुष्य गति में तो बहुत ही सीमित मनुष्य जीवों की संख्या है। इसीलिए मनुष्य का जन्म कीमती जन्म है। अतः देव-नरक या तिर्यंच की गति से २% या ५०% जीव ही मनुष्य गति में आते होंगे। मनुष्य का चारों गति में गमन :
मनुष्य गति और तिर्यंच गति के जीवों के लिए उपरोक्त नियम नहीं लागू होता। ये चारों गति में जाते हैं। मनुष्य मृत्यु के बाद देवगति में जाकर देव बनता है। कर्म की गति नयारी
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