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तेल नहीं होता हैं, अत: उस रेती के लाखों कण यदि घानी में पीले भी जाय तो भी तेल नही निकलता है। उसी तरह परमाणु में ही तथाप्रकार के वर्ण-गंध-रसस्पर्शादि गुणधर्म भरे पड़े हैं अतः वे ही संघात प्रक्रिया के बाद स्कंध में प्रगट होते हैं। पुद्गल के लक्षण :
सबंधयार उज्जोअ, पभा छायाऽऽ नवेहिय । वण्ण-गंध-रसा-फासा, पुग्गलाणं तु लक्खण ।।
नवतत्त्व प्रकरण के इस श्लोक में शब्द, अंधकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप तथा वर्ण-गंध-रस स्पर्शादि ये सभी पुद्गल के लक्षण बताए हैं । अतः शब्दादि ये सभी पौद्गल हैं।
शब्द - {कसी भी प्रकार की ध्वनि-शब्द ये पौद्गलिक है। सचित्तअचित्त-एवं मिश्र इस तरह ३ प्रकार की ध्वनि होती है। नैयायिकों ने शब्द को . आकाश का गुण माना है यह न्याययुक्त नहीं है। रेडियो, टी.वी., टेलीफोन के माध्यम से शब्द पकड़े जाते हैं अतः पौद्गलिक है।
___ उद्योत - अर्थात् शीत (ठंडा) प्रकाश । चंद्र तथा चंद्रकान्तमणि आदि शीतल वस्तुओं का शीतल प्रकाश यह उद्योत भी पौद्गलिक है।
छाया - प्रतिबिंब को छाया कहते हैं। आज छाया चित्र बनते हैं। प्रकाश का अवरोध करके पड़ने वाली छाया भी पौदगलिक है।
अन्धकार - अन्धेरा, रात्रि का अन्धेरा या जहां प्रकाश नहीं पहुँचता ऐसे तलघर का अन्धेरा आदि। अन्धेरा-अन्धकार जो दिखाई देता है यह भी पौगलिक है। नैयायिकों की तरह तेज का अभाव तम नहीं है। यह अन्धेरा भी स्वतंत्र पुद्गल
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कर्म की गति नयारी