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(१) आत्मा के अनंत ज्ञान गुण को ढकने वाले कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं के पिंड रूप बने कर्मावरण का नाम ज्ञानावरणीय कर्म है । आत्मा के आठ विभाग गुणानुसार किए गए हैं। आत्म प्रदेशों पर आई हुई कार्मण वर्गणा उन उन विभाग के आधार पर उन उन गुण को ढकने वाले आवरक कर्म के नाम से पहचानी जाती है। इसलिए आत्म गुण के नाम को जोड़कर आवरण शब्द लगाकर कर्म का नाम बनाया है। या दूसरा तरीका है उस गुण के ढक जाने से दब जाने से उस कर्म ने क्या किया है, क्या असर है उस रूप से भी नामकरण की व्यवस्था की गई है।
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(२) आत्मा के अनंत दर्शन गुण को ढकने वाले कर्म को दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं ।
(३) आत्मा के अनंत चारित्र गुण को ढकने वाले कर्म को चारित्रावरणीय कर्म भी कहते हैं। या दूसरी रीत से आत्मा के अव्याबाध स्वरूप को जो कि शुद्ध स्वरूप है उसे रोक कर मोहग्रस्त करने वाले कर्म को मोहनीय कर्म कहते हैं ।
(४) आत्मा में अनंत वीर्य गुण है। वीर्य यहां शक्ति अर्थ में प्रयुक्त है। इस अनंत वीर्य गुण का आवरक अर्थात् अवरोधक अंतराय कर्म के नाम से पहचाना जाता है।
अंतराय करना अर्थात् विघ्न डालना - अवरोध करना। इस पर से अंतराय कर्म नाम पड़ा। यह आत्मा की शक्तियों को, उपलब्धियों को प्रगट होने में विघ्न अंतराय करता है।
आयुष्य कर्म
अक्षय
सुख
वेदनीय कर्म अनंत
स्थिती
गोत्र कर्म
अगुरुलघु
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ज्ञानावरणीय कर्म अनंत
जीव
२ ३
ज्ञान अनंत दर्शन अनत चारित्र
(५) चेतन आत्म
द्रव्य स्वस्वरूप अनामी है। अरूपी है। आत्मा का कोई नाम नहीं है। आकार विशेष भी नहीं है। आत्मा का कोई रंगरूप भी नहीं है। आत्मा कोई. हाथ-पैर वाली आकृति विशेष
भी नहीं है। फिर भी आत्मा को रुप-रंग वाला, नाम- आकृति - गति-जाति- शरीरादि वाला बनाने का काम करने वाला नाम कर्म है ।
(६) आत्मा हल्की - भारी भी नहीं है। ऊंच-नीच - छोटे-बड़े आदि का आत्मा से कोई संबंध नहीं है। ऐसी अगुरुलघु स्वभाव वाली आत्मा को उच्च वर्ण (जाति) कुल तथा नीच वर्ण-कुल- जाति आदि में ले जाने वाला गोत्र कर्म है । यह छोटा है, कर्म की गति नयारी
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दर्शनावरणीय कम/
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मोहनीय कर्म