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है,तथा पांचवे आरे के अन्त तक १ साधु १ साध्वी १ श्रावक १ श्राविका रहेंगे वहां तक यह शासन चलेगा। यह शासन २१००० वर्ष तक श्रुतज्ञान से चलेगा। अतः केवलज्ञान से भी ज्यादा श्रुतज्ञान का शासन चला । केवलज्ञानी भगवंतो की अपेक्षा श्रुतज्ञानी भगवंतो का उपकार क्षेत्र भी लम्बा चौड़ा है। अतः इस अपेक्षा से श्रुतज्ञान को मध्य केन्द्र में रखा है। ज्ञानमात्र आत्मा के लिए परम उपकारी है। ज्ञान का उपकार सर्वोत्तम है। श्रुतज्ञान का उद्गमस्त्रोत जबकि केवलज्ञान ही है। केवली भगवान ही है। अतः श्रुतज्ञानी को केवली के सत्य वचन पर ही चलना है। अपने मन की नहीं परंतु सर्वज्ञ के वचन को समझना है। दो प्रकार के जीवों का कल्याण होता है :
शास्त्रों में कहा है कि- ज्ञानी का कल्याण होता है तथा ज्ञानी की निश्रा में रहनेवाले जीवों का कल्याण होता है। उदाहरण के लिए समझीए कि एक Pilot plane चलाता है। वह जानकार है । विमान चलाने में कुशल तज्ञ है। हम जो बैठने वाले मुसाफिर है वे विमान चलाने की क्रिया के बारे में एक अक्षर भी नहीं जानते हैं। फिर भी चालक के ज्ञान पर भरोसा रखकर बैठते हैं। उसके आधार पर हम भी पार उतरते हैं। डॉक्टर सर्जन है। वह औपरेशन करता है। हम इस विषय में एक अक्षर भी नहीं जानते हैं। अतः हमने डॉक्टर के भरोसे सारा शरीर समर्पित कर दिया है। उसके ज्ञान पर हमें भरोसा है। यद्यपि जीवन-मृत्यु का प्रश्न है फिर भी ज्ञानी पर विश्वास रखा है वह आपको मृत्यु से बचाता है। इसी तरह हजार-डेढ हजार आदमी ट्रेन में बैठते हैं । ट्रेन चलाना कोई नहीं जानता है। फिर भी सभी ने एक चालक पर विश्वास रखा है। ज्ञानी के ज्ञान के आधार पर ज्ञानी पर श्रद्धा रखी जाती है। डॉक्टर के विषय में लोग कहते ही है कि-रोग के विषय में कुशल विशेषज्ञ डॉक्टर के हाथ से मरना भी बेहतर है परंतु अनगढ़ ऊंटवैद्य के हाथ से अमृत पीना भी व्यर्थ है। ज्ञानी गीतार्थ के हाथ से मौका पडे तो हलाहल जहर पीना भी अच्छा है परंतु अज्ञानी-मूर्ख के हाथ से अमृत पीना भी अच्छा नहीं है। यह बहुत ही महत्त्व की बात है। ज्ञानी पर ही सारा विश्वास है। ज्ञानी ही गीतार्थ तारक महापुरूष है। इसलिए हमारे जैसे अज्ञानी या अल्पज्ञानी को चाहिए कि सच्चे ज्ञानी के भरोसे अपनी जीवन नौका समर्पित कर दे। ज्ञानी ही सच्चे निर्देशक है-दिशासूचक है। तारक है । अल्पज्ञानी अधूरे ज्ञान वाला और भी खतरनाक है। अतः कहा भी गया है कि little Knowledge is more Dangerous अधूराज्ञान ज्यादा खतरनाक होता है। अर्धदग्ध ज्ञानवाले जीव कभी कभी बहुत ज्यादा नुकसान भी करते हैं। अतः अल्पज्ञ जीव को चाहिए कि वह पूर्ण श्रद्धा से ज्ञानी गीतार्थ महापुरुषों की शरण स्वीकारे। ज्ञानी की आज्ञा का
कर्म की गति नयारी
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