Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Rsearch Foundation Viralayam

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Page 211
________________ (२) अल्प - अल्प प्रकार से ज्ञान हो उसे 'अल्प' भेद कहा है। (३) बहुविध - अनेक तरीके से होने वाले ज्ञान को बहुविध' कहा है। (४) एकविध - एक ही तरीके से होने वाले ज्ञान को एकविध' कहा है। (५) क्षिप्र (शिघ्र) - जल्दी से होने वाले ज्ञान को 'क्षिप्र' कहा है। (६) विलम्ब से - देरी से-विलंब से होने वाले ज्ञान को 'विलंब' कहा है। (७) अनिश्रित - पूरा वाक्य मुंह से न भी निकला हो फिर भी ज्ञान करले वह । (C) निश्रित - मुंह से पूरा वाक्य शब्द निकालने के बाद ही ज्ञान करे वह । (९) अनुक्त - न कहें फिर भी जो अभिप्राय मात्र से जान ले वह । (१०) उक्त - कहे गए स्पष्ट शब्दों से ही ज्ञान प्राप्त करे वह 'उक्त'। (११) ध्रुव - जैसा ज्ञान एक बार हुआ हो वैसा सदा-नित्य होता रहे उसे । (१२) अध्रुव - एक बार होने पर बार बार नहीं होता उसे अध्रुव कहा। इस तरह ये १२ प्रकार क्षयोपशम के आधार पर बताए गए हैं। सूत्र में तो बहु-बहुविधादि ६ ही नाम बताए गए हैं। परंतु 'सेतराणाम्' शब्द से उन्हीं छह के इतर अर्थात् विरोधि शब्द लेना यह कहा गया है। अतः बहु-बहुविध के ६ और उन्हीं के ६ विरोधि इस तरह कुल १२ प्रकार हुए। इन बारह ही प्रकार को उपरोक्त अवग्रहादि २८ प्रकार से गुणाकार किया जाय तो २८ x १२ = ३३६ प्रकार बनते हैं। चूंकि मुख्य तो अवग्रहादि के भेद है। मूल प्रक्रिया तो अवग्रहादि की है। वही कमज्यादा, जल्दी से, विलम्ब से, एक प्रकार से, अनेक प्रकार से इत्यादि १२ प्रकार से गुणाकार करना आवश्यक है। इस तरह ३३६ भेद मतिज्ञान के होते हैं। - बुद्धि के ४ भेद ! . . (१) औत्पातिकी (२) वैनयिकी (३) कार्मिकी (४) पारिणामिकी (१) औत्पातिकी बुद्धि - स्वयं जो बुद्धि कार्य करते हुए उत्पन्न हो उसे औत्पातिकी बुद्धि कहते हैं (२) विनयादि गुणोपासना से गुरु के आशीर्वाद से उत्पन्न होने वाली बुद्धि वैनयिकी बुद्धि कहलाती है (३) लुहार, सुथार, चमार आदि के कर्म करते हुए जो बुद्धि कार्य संबंधी उत्पन्न हो वह कार्मिकी बुद्धि कही जाती है (४) पारिणामिकी - परिणाम जन्य मति को पारिणामिकी बुद्धि कही है। अतः इस तरह चार प्रकार की बुद्धि से उपरोक्त ३३६ प्रकार के ज्ञान होते हैं इसलिए उपरोक्त ३३६ के साथ बुद्धि के ये ४ प्रकार मिलाने से ३३६ + ४ = ३४० प्रकार का मतिज्ञान होता है। विशेषावश्यक भाष्य तथा नन्दी सूत्रादि में ३४० भेद विस्तार से मतिज्ञान के बताए गए हैं । शास्त्रों में मति-बुद्धि के विशेष कथा प्रसंग भी बताए हैं। बुद्धि प्रभाव :कर्म की गति नयारी

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