Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Rsearch Foundation Viralayam

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Page 218
________________ संज्ञाक्षर लिपि को कहते हैं। व्यंजनादि का उच्चार होता है। शब्द और अर्थ की प्रतीति के ज्ञान को लब्ध्य क्षर कहते हैं। इन तिनों से ज्ञान होता है। २. अनक्षर श्रुत - जिसमें अक्षरों का उपयोग न किया जाय और चुटकी बजाना, छिंकना, सिर हिलाना इत्यादि संकेतों से होने वाले ज्ञान को अनक्षर श्रुत कहते हैं। ३. संज्ञि श्रत - जो मन वाले संज्ञि पंचेन्द्रिय जीव है उनको होने वाला ज्ञान यह संज्ञि श्रुत है । (१) दीर्घकालिकी (२) हेतुवादोपदेशिकि और (३) दृष्टिवादोपदेशिकी ये ३ संज्ञाएं है। ४. असंज्ञी श्रुत - जिन जीवों को मन ही नहीं है । एकेन्द्रिय से विकलेन्द्रिय तक के जीवों का श्रुत यह असंज्ञी श्रुत कहलाता है। ५. सम्यक् श्रुत - देव-गुरु-धर्म की श्रध्दा तथा जीवादि नौं तत्त्वों की श्रध्दा वाले सम्यक् दृष्टि जीवों का जो श्रुतज्ञान होता है उसे सम्यक् श्रुत कहते हैं। ६. मिथ्यादृष्टि श्रुत - जीवादि नौं तत्त्वों की श्रध्दा हों, सही ज्ञान न हो, ऐसे मिथ्यादृष्टि जीवों का ज्ञान मिथ्यादृष्टि श्रुत कहलाता है। ७. सादि श्रुत- जिस ज्ञान की क्रमशः शुरुआत-आदि या प्रारम्भ हो वह सादि श्रुत कहलाता है। ८.अनादि श्रुत-जिसकी आदि न हो, आदि का पता ही न हो वैसा ज्ञान अनादि श्रुत कहलाता है। ९. सपर्यवसित श्रुत - जिसका अंत हो वह सपर्यवसित श्रुत है। १०.अपर्यवसित श्रुत - जिसका अंत न हो वह अपर्यवसित श्रुत है।' ११. गमिक श्रुत-जिसमें गम अर्थात् पाठ एक सरिखे हो उसे गमिक श्रुत कहते हैं ।जैसे-दृष्टिवाद। १२.अगमिक श्रुत-जिसमें एक सरिखे पाठ न हों, उसे अगमिक श्रुत कहते हैं,जैसे-कालिक श्रुत। .. १३ अंगप्रविष्ट श्रुत - आचारांग आदि १२ अंगो के ज्ञान को अंगप्रविष्ट श्रुत कहते हैं। १४. अंगबाह्य श्रुत - आचारांगादि सूत्रों से बाहरी-अलग ज्ञान को अंगबाह्य श्रुत कहते हैं। जैसे-दशवैशालिक, उत्तराध्ययन, प्रकरणादि ज्ञान अंगबाह्य कहा जाता है। प्रकारान्त से श्रुतज्ञान के २० भेद इस प्रकार बताए हैं। पज्जय अक्खर पय संघाया पडिवत्ति तहय अणुओगे। पाहुड पाहुडपाहुड वत्थु पुव्वा य ससमासा ।।७।। इस गाथा में १० नाम बताकर दूसरे दस नाम बताने के लिए समास शब्द दिया है। जो पहले दस नाम है उन्हीं के साथ समास शब्द जाड़ने से दूसरे दस नाम (२०१) कर्म की गति नयारी

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