Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Rsearch Foundation Viralayam

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Page 234
________________ अतः ज्ञान भी अनंत है। जगत् में वस्तुएं अनंत है अतः सर्वज्ञ का ज्ञान अनंत होता है। अनंत ज्ञान से ही जगत् के अनंत पदार्थों का, एक एक पदार्थ की अनंत अनंत पर्यायों का ज्ञान होता है। जानते हैं देखते हैं । अतः केवलज्ञान को अनंतज्ञान' कहा है। केवलज्ञान अभेद है। केवलज्ञान एकमेव अव्दितीय शुध्द पूर्ण सम्पूर्ण अनंतज्ञान है। यह सर्वथा क्षायिक भाव से प्रगट होता है। क्षयोपशम से नहीं। अतः केवलज्ञान में न्यूनाधिकता का सवाल ही खड़ा नहीं होता। इसलिए केवलज्ञान के भेद प्रभेद नहीं होते हैं। जहां भी होगा, जिस किसी को भी होगा, या जितनों को भी होगा सभी के केवलज्ञान में एकसी सादृश्यता रहेगी। कोई भेद नहीं होगा । रत्तीभर भी कम ज्यादापन एक दूसरे में नहीं होगा। सभी में केवलज्ञान एक सरीखा अनंत स्वरूप में ही होता है। ऐसा नहीं कि तीर्थंकर में ज्यादा और सामान्य केवली में कम, या गणधर में ज्यादा और मुनि केवली में कम ऐसा कभी भी नहीं होता है। सभी का केवलज्ञान एक सरीखा होता है सूर्य के उदित होने से तारा-चंद्रादि का प्रकाश नहीं रहता सभी का प्रकाश सूर्यवत् तेजस्वी-प्रतापी होता है। अन्य चारों ज्ञान केवलज्ञान में मिल जाते हैं। केवलज्ञान हो जाने के बाद अन्य मति आदि चारों ज्ञानों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहता। सभी केवलज्ञान में सम्मिलित हो जाते हैं। अंतः केवलज्ञान एक स्वतंत्र निर्भेद होता है। ऐसा अनंत वस्तु विषयक अनुपम अव्दितीय केवलज्ञान हम सब प्राप्त करें, सभी केवली सर्वज्ञ बनें ऐसी अनंतज्ञानी सर्वज्ञ भगवंतो के चरणारविंद में अनंतानंत बार प्रार्थना करते हैं। ।। सर्वेऽपि सन्तु ज्ञानिनः ।। . ACHARYA SA KANYS I GYANINANDİR Soma Habaritia KEHIDRA KeraYandhinabir-382 009 Phone: (079)23276252,23276204.0' कर्म की गति नयारी (२१७

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