Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Rsearch Foundation Viralayam

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Page 235
________________ थाणा के जैन संघ का स्वर्णिम इतिहास आर्यावर्त भारतदेश के दक्षिण में महाराष्ट्र राज्य के सह्याद्री की पर्वतमाला तथा अरबी समुद्र की खाडी के किनारे, कोंकण प्रदेश में, थाणा एक ऐतिहासिक नगरी है। श्रीपाल रास में जिसका ऐतिहासिक वर्णन प्राप्त होता है कि...धवल शेठ के द्वारा समुद्र में फेंके गए श्रीपाल राजा मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर थाणा नगरी के समुद्री किनारे आए थे । थाणा के वसुपाल राजा ने श्रीपाल का स्वागत किया और अपनी राजकुमारी मदनमंजरी ब्याही, अपने दामाद बनाकर थाणा का राज्य उन्हें सोंपा था। इस तरह थाणा श्रीपाल का ससुराल तथा राज्य रहा हुआ था। थाणा नगरी में श्रीपाल राजा ने नवपद - सिद्धचक्र की आराधना की थी। इस इतिहास को करीब ग्यारह लाख वर्ष बीत चूके हैं। थाणा बंदरगाह के रुप में विकसित हुआ । समीपस्थ मुंबई के साथ बडे पुलो द्वारा रेल्वे एवं रास्ते से जुड़े हए थाणा शहर का काफी विकास हआ। कच्छी-गुजरातीरजस्थानी जैन प्रजा व्यापार-व्यवसायार्थ काफी अच्छी संख्यामें यहां आकर बसे । धर्मिष्ठ जैनों ने टेंभी नाका परिसर में सर्व प्रथम आदीश्वर प्रभु का भव्य जिनालय बनाया था। जिसे करीब १५० वर्ष व्यतीत हुए हैं । यद्यपि जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा भी हो चुकी है। पू. आत्मारामजी म. के शिष्य पू. शान्तिविजयजी म. थाणा पधारे और स्वरोदय-प्रश्न तंत्र से मुनिसुव्रतस्वामी भ. का मंदिर बनाने की प्रेरणा दी । परिणाम स्वरुप बडी विशाल जगह लेकर केन्द्र में मुनिसुव्रतस्वामी भ. का विशाल मंदिर निर्माण किया ।। रंगमंडप में नवपद-सिद्धचक्र यंत्र का मंडलाकार मंदिर बनाया तथा दिवालों पर श्रीपाल रासादि अन्य चरित्र तथा तीर्थादि के पाषाण शिल्प की रंगीन कलाकृति उत्कीर्ण की गई है, जो दर्शनीय है। पांच मंजिल का विशाल उपाश्रय-आराधना भवन है । आयंबिल शाला है । माणिभद्र प्रवचन हॉल है। श्री मुनिसुव्रतस्वामी जैन लायब्रेरी है । सामने साध्वीजी म. का उपाश्रय है। श्री विजय वल्लभ विद्यालय यहां चलती है । केसरीयाजी भवन धर्मशाला है। बहत बडा कबूतर खाना-जीवदया का केन्द्र है । माणिभद्रवीर की देरी है । इस तरह श्री ऋषभदेवजी महाराज जैन धर्म टेम्पल एंड ज्ञाति ट्रस्ट - श्री राजस्थानी श्वे.मू. जैन संघ का विशाल संकुल है । कोंकण के शत्रुजय तीर्थ के रुप में इसकी प्रसिद्धि है । खास करके शनिवार को यहां कई भक्तगण दर्शनार्थ आते हैं। सबके लिए भाता की व्यवस्था रखी है । श्री संघ द्वारा मानव क्षुधा तृप्ति केन्द्र कई वर्षो से चलाया जाता है । अनुकंपा के इस कार्य में गरीबों को खिचडी आदि का भोजन प्रतिदिन दिया जाता है। यहां वर्षों से अनेक पू. आचार्य भगवंतो, पदस्थों, पू. साधु, साध्वीजी म.सा. के चातुर्मास होते ही रहते हैं। नियमित प्रवचन श्रवण, धर्मध्यान आराधना आदि चलती रहती है। सुंदर पाठशाला यहां चलती है। कई बच्चे धार्मिक अभ्यास करते हैं । थाणा नगरी में प्रतिवर्ष जैनों की आबादी बढती ही जा रही है। यह थाणा में जैनों के स्वर्णिम इतिहास की प्रगति का चितार है।

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