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अनेक गुना विशाल है-कहते हैं कि समुद्र का. महासागर का पार पाना आसान है परन्तु श्रुतज्ञान रुपी शास्त्र सागर का अन्त पाना या पार पाना अत्यन्त कठिन है। अत्यंत सार रूप से संक्षेप में यहां पर वर्णन किया है। विशेष विस्तार से ज्ञान का स्वरूप समझने वाले जिज्ञासुओं को विशेषावश्यक भाष्य, नन्दिसूत्र आदि शास्त्रों के अध्ययन से संतोष प्राप्त होगा। प्रत्यक्ष ज्ञानका स्वरूप :
- पांच ज्ञानों में से जो दो परोक्ष ज्ञान थे - मतिज्ञान और श्रुतज्ञान उनका वर्णन किया। अब जो परोक्ष नहीं है प्रत्यक्ष ज्ञान है उसका वर्णन किया जाता है। प्रत्यक्ष-परोक्ष शब्दों की चर्चा पहले कर चुके हैं। नन्दिसूत्र में प्रत्यक्ष - परोक्ष ज्ञानों के भेद इस तरह किये हैं -
नंदि सूत्र - तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-पच्चक्खं च . परोक्खं च। से किं तं पच्चक्खं ? पच्चक्खं दविहं पण्णत्तं, तं जहा इन्दियपच्चक्खं च णोइंदिय पच्चक्खं च । से किं तं इंदियपच्चक्खं? इंदियपच्चक्खं पंचविहं पण्णतं, तं जहा (१) रसोइंदियपच्चनखं (२) चक्खिंदिय पच्चक्खं (३) घाणिंदियपच्चक्खं (४) रसणेन्दिय पच्चक्खं (५) फासिंदिय पच्चक्खं। से तं इन्दिय पच्चक्खं ।
से किं तं णोइन्दिय पच्चक्खं ? णोइन्दिय पच्चक्खं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा- (१) ओहिणाण पच्चक्खं, (२) मणपज्जवणाण पच्चक्खं (३) केवलणाण पच्चक्खं।
ज्ञान
प्रत्यक्ष
परोक्ष श्रुतज्ञान
इन्द्रियप्रत्यक्ष
नोन्द्रिय प्रत्यक्ष बिना इन्द्रिय के प्रत्यक्ष
मतिज्ञान (परोक्ष)
देशप्रत्यक्ष
सर्व प्रत्यक्ष
अवधिज्ञान मनःपर्यवज्ञान
केवलज्ञान इस तरह नन्दिसूत्र में पांच ज्ञान के भेदों को प्रत्यक्ष और परोक्ष के दो भेदों
-कर्म की गति नयारी
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