Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Rsearch Foundation Viralayam

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Page 213
________________ होता है । मतिज्ञान में जो अवग्रह-ईहा-अपाय तथा धारणा के चार भेद बताए गए हैं उनमें धारणा यह स्मृति रूप है। भूतकाल में बनी हुई बात को स्मृति से धारण करके रखनी यह धारणा है। अविस्मृति यह स्मरण शक्ति है। अतः जाति स्मरण यह मतिज्ञान के धारणा के भेद में समाविष्ट होता है। हमें जिस तरह ५-१०-२५-५० वर्ष पुरानी बात याद रहती है। वैसे ही किसी किसी को पूर्वजन्म की बात भी याद रहती है । यद्यपि आत्मा के ज्ञान में तो सैंकड़ो लाखों जन्मों की बातें-घटनाएं संचित है लेकिन उन पर आवरण आने के कारण वे बाते दब जाती है । ढक जाती है। परंतु भावि में तथाप्रकार का निमित्त मिल जाय तो वे सुषुप्त मन की बातें पुनः जागृत होकर स्मृति पटल पर आती है। पूर्वजन्म, गत भव की बातें तथाप्रकार के उद्बोधकउत्तेजक निमित्त मिलने पर तथाप्रकार के मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जागृत हो जाती है। पूर्व की स्मृति ताजी बन जाती है उसे जाती स्मरण ज्ञान या पूर्वभवीय ज्ञान कहते हैं। इसे मतिज्ञान में इसलिए गिनते हैं क्योंकि स्मरण शक्ति का प्रकार है। यादशक्ति के आधार पर होता है। सभी को इसलिए नहीं होता क्योंकि सभी को तथाप्रकार के उद्बोधक उत्तेजक निमित्त नहीं मिलते, तथा ऊहा-पोह करने योग्य निमित्त नहीं मिलते, तथा दूसरी तरफ मति पर मतिज्ञानावरणीय कर्म का आवरण सविशेष ज्यादा है, तथा तीसरी तरफ हमको उद्बोधन-संबोधन करने वाले वैसे ज्ञानी गीतार्थ भी वर्तमान में उपलब्ध नहीं है जो हमारे पूर्व जन्मों की घटना को ताजी कराने के लिए वैसे उद्बोधन करे । अतः आज बहुत मुश्किल है। फिर भी इन तीनों कारणों में से एक-दो की भी उपलब्धि हो जाय तो भी ज्ञान हो सकता है। उदाहरणार्थ भगवान महावीर प्रभु ने आए हुए मेघकुमार को उसके पूर्व जन्म हाथी के भव की घटना सुनाई, और सुनते ही मेघकुमार ने मनोमन ऊहापोह किया, क्या मैं ही हाथी था ? इस तरह विचार करते हुए तथा दूसरी तरफ प्रभु के मुख से अपना ही पूर्व भव सुनते हुए मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जाति स्मरण ज्ञान हो गया। सर्प जो भगवान के पैरों में काटने आया - उसे भगवान महावीर ने चंडकौशिक के नाम से संबोधन किया। सर्प यह नाम सुनकर चौंक उठा। उहापोह करने लगा। चंडकौशिक यह सांप का नाम नहीं था। यह उस सर्प के पूर्व जन्म का नाम था। कौशिक गोत्र था और भयंकर क्रोध करने के कारण चंड शब्द लोगों ने आगे जोड़ दिया था। उसी से व्यवहार चल रहा था। प्रभु महावीर उद्बोधक निमित्त थे। सर्प ने उन शब्दों पर गौर से सोचा, उसे पूर्व जन्म की बातें याद आने लगी। क्षण में जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। अब तो कहना ही क्या था? पूर्व के भव देखकर मैं साधु था, और कहां से गिरकर आज कहां सर्प योनि में आया हं। अरे रे! यह क्या हआ? बस पश्चाताप की धारा जगी और वह सर्प-आठवें स्वर्ग में गया। कर्म की गति नयारी (१९६

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