Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Rsearch Foundation Viralayam

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ हैं। आत्मा अर्थ के आधार पर व्याख्या इस प्रकार बनेगी-अक्ष इति आत्मा “तमेव प्रति नियतं प्रत्यक्षम" अक्ष अर्थात् आत्मा और आत्मा के प्रति नियत जो ज्ञान हो अर्थात् आत्मा से ही सीधा जो ज्ञान हो वह प्रत्यक्ष कहलाता है। आत्मा अन्य इन्द्रियों आदि की अपेक्षा रखे बिना जिस वस्तु को स्वयं ही ग्रहण करें इसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं। यही व्याख्या तत्त्वार्थ वार्तिक में इस तरह बताई है - इन्द्रियानिन्द्रियानपेक्षमतीतव्यभिचारं साकारग्रहणं प्रत्यक्षं'। अक्ष्णोतिव्याप्नोति-जानाति इति अक्ष-आत्मा, प्राप्तक्षयोपशमः प्रक्षीणावरणे वा, तमेव प्रतिनियतं प्रत्यक्षम् । अक्षं प्रति नियतमिति परापेक्षानिवृत्तिः । इन्द्रियाँ तथा अनिन्द्रिय मन की अपेक्षा जिसमें न हों ऐसा व्यभिचारदोष रहित जो साकार ग्रहण होता है उसे प्रत्यक्ष (ज्ञान) कहते हैं। अक्ष धातु से व्याप्त होकर जानना यह अर्थ है । जो ज्ञान आवरण की अपेक्षा से हो, जिसमें इन्द्रियां, मन की आवश्यकता न हो वैसा ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान कहलाता है। पर की अपेक्षा की निवृत्ति वाला ज्ञान हो वह ज्ञान प्रत्यक्ष है। यह प्रत्यक्ष शब्द का सही अर्थ है । व्युत्पत्ति गम्य अर्थ है । अतः जैन दर्शन की यह विशेषता है कि जो इन्द्रियों और मन की सहायता न होने पर भी आत्मा को जो सीधा ज्ञान होता है उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहा है। “प्रत्यक्षमन्यत्' इस सूत्र से अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान इन तीनों को प्रत्यक्षज्ञान कहा है। इन तीनों में इन्द्रियों की तथा मन की आवश्यकता नहीं है। ये सीधे आत्मा से होते हैं अतः प्रत्यक्ष ज्ञान कहलाते हैं। (२) परोक्षज्ञान - ठीक प्रत्यक्ष से विपरीत इन्द्रियों तथा मन की सहायता से जो ज्ञान हो उसे परोक्ष ज्ञान कहते हैं। ‘अक्षस्य परे इति परोक्षम्' जो सीधे आत्मा से न जाना जाय, आत्मा के लिए जो पर हो वह परोक्ष ज्ञान कहा जाता है, अर्थात् जिसमें इन्द्रियां और मन सहायक हो वह ज्ञान परोक्षज्ञान कहलाता है। मन और इन्द्रियां ये दोनों आत्मा के लिए ज्ञान के सहायक साधन है। सीधे आत्मा से ज्ञान. न होकर जो मन तथा इन्द्रियों के द्वारा हो वह ज्ञान परोक्षज्ञान है। ऐसे दो ज्ञान है पहला मतिज्ञान और दूसरा श्रुतज्ञान । इस तरह पांच ज्ञानों में प्रत्यक्ष में तीन ज्ञान तथा परोक्ष में दो ज्ञान लिए गए हैं। अब क्रमशः पांच ज्ञानों का भेद-प्रभेद सहित स्वरूप देखें - मतिज्ञान का स्वरूप : मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के इस सूत्र में मतिज्ञान के पांच पर्यायवाची नाम बताए गए हैं (१) मति (२) स्मृति (३) संज्ञा (४) चिन्ता (५) अभिनिबोध । ये सभी एक ही अर्थ में प्रयुक्त है। वर्तमान का विचार आवे उसे मति या संज्ञा कहते हैं। भूतकाल की याद आवे उसे स्मृति कहते हैं। वर्तमानकाल के साथ भूतकाल का अनुसंधान हो उसे प्रत्यभिज्ञा (१८९) कर्म की गति नयारी

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236