Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Rsearch Foundation Viralayam

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Page 202
________________ पूर्ण रूप से पालन करें। सर्व समर्पित भाव से ज्ञानी की शरण स्वीकारनेवाला भी कल्याण पथ पर अग्रसर होता है। ‘महाजनो येन गतः स पन्थाः ' - महापुरुष जिस मार्ग पर गए हैं वही हमारे लिए भी मार्ग है। सही पन्थ है।अतः हमें हमारे पूर्वज महापुरुषों का अनुसरण करना चाहिए । उसी श्रेयस्कर मार्ग पर चलना चाहिए। ज्ञान से ज्ञानी की महत्ता : ज्ञानी कौन है? किसे ज्ञानी कहना चाहिए ? इसका सीधा उत्तर है कि ज्ञान गरिमा से सम्पन्न महापुरुष को ज्ञानी कहना चाहिए। जिन महात्मा को स्व-पर शास्त्रों का, स्व-पर दर्शन का समीचिन ज्ञान हो वह सच्चा ज्ञानी है। जिन्हें हेय-ज्ञेयउपादेय तत्त्वों का सही भेदक ज्ञान हो वह ज्ञानी है। विधान-सिद्धांत-और अपवाद का योग्य ज्ञान जिसे हो वह सच्चा ज्ञानी है। सम्यग् आगम शास्त्रों के पूर्वापर संबंध का योग्य ज्ञान जिन्होंने आत्मसात् किया हो वे सच्चे ज्ञानी गीतार्थ महापुरुष कहलाते हैं । ज्ञानस्थविर गीतार्थ महापुरुष जो मोक्षमार्गोपदेशक हैं, एवं तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान सम्पादित करके जगत् को उसी मार्ग की श्रद्धा जगाने वाले वास्तव में महान ज्ञानी है। इस तरह ज्ञान के आधार पर ज्ञानी की महिमा शास्त्रों में गाई गई है। ऐसे ज्ञानी महात्मा संसार सागर से पार उतरते हैं और उनकी शरण स्वीकारने वाले अल्पज्ञानी-अज्ञानी जीव भी संसार से पार उतरते हैं । उनका भी कल्याण होता है । अतः आश्रय लेना तो ज्ञानी गीतार्थ का ही लेना। शरण स्वीकारनी तो सर्व समर्पित भाव से ऐसे ज्ञानी महापुरुष की ही शरण स्वीकारनी चाहिए। ज्ञानी की पाप मार्ग से बचाएंगे। जो एक को जानता है वह सब कुछ जानता है : श्री आचारांग सूत्र में कहा है - "जे एगं जाएइ से सव्वं जाएइ"।। जो एक को जानता है वह सब कछ जानता है,यह बहत गंभीर रहस्यात्मक बात है। इस वाक्य में बहुत बड़ी बात की गई है । एक शब्द यहां आत्मा के लिए प्रयुक्त हुआ है। अतः जो एक आत्म तत्त्व को अच्छी तरह पहचानता है वह जगत के सभी तत्त्वों को पहचानता है। अंतरात्मा ही समस्त जगत् के ज्ञान का खजाना है। इसे पहचानना ही बड़ा कठिन कार्य है। आज हम बाह्य जगत् के सैंकड़ों तत्त्वों को जानने के पीछे पागल हुए हैं। दुनिया को देख लें। सब कुछ जान लें। इस तरह समस्त बाह्य जगत को जानने के लिए दौड़ रहे हैं। परंतु मूल में अपने आप को जानना ही भूल गए हैं। यह बात उस हिरन के जैसी हुई जो कस्तुरी के लिए जंगल में चारों तरफ भटक रहा है। मारा मारा दौड़ रहा है। आखिर कस्तुरी कहीं पर भी नहीं मिल रही है। भटकभटक कर थककर प्राणों की आहूति भी दे देता है। परंतु उस बेचारे को इतना भी पता नहीं है कि कस्तुरी मेरी ही नाभि में है। इस अज्ञान के कारण बेचारा हिरन भटकता रहा । “अन्नाणं खु महाभयं” अज्ञान सचमुच महाभयंकर है। यही सब दुःखों की कर्म की गति नयारी

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