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में आकर फल देकर निर्जरित हो जाते हैं, या उदीरणा में खिंचकर लाकर निर्जरित किये जाते हैं। आश्रव मार्ग से आए हुए कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणु बंध हेतुओं से कर्म बंध होता है। बंध कैसा या किस तरह का होता है ? यह जानने के लिए बंध की स्पृष्ट- बद्ध-निधत्त और निकाचित ये चार अवस्थाएं देखी। यह हुआ कर्मबंध सत्ता
पड़ा रहता है। उसके बाद उनका उदय होता है और यदि की जाय तो उदीरणा होती है । इस प्रकार कर्म बंध तत्त्व का विचार किया गया है। यद्यपि संक्षेप में है फिर भी सारभूत तत्त्व समझने में उपयोगी है कर्म के आगमन एवं बंध की प्रक्रिया समझाई गई है, जिससे कर्म कैसे बनते हैं ? कर्म क्या है ? इत्यादि समझ में आ जाय ! आगे आत्मा के प्रमुख ज्ञान गुण की विचारणा करके एक एक कर्म की विचारणा करेंगे ।
) आध्यात्मिक विकास यात्रा
भाग १, २, ३
कर्म सिद्धांत के दृष्टि कोण से १४ गुणस्थानको के "उपर सचित्र विवरण का सुंदर ग्रन्थ तैयार हुआ है । सरल हिन्दी भाषा में ऐसा सुंदर विवेचन बहुत कम उपलब्ध होता है। जैन श्रमण संघ के डबल M. A. Ph.d हुए पंन्यास डॉ. अरुणविजय गणिवर्य म. जो कि सिद्धहस्त लेखक हैं एवं समस्त जैन संघ में सचित्र शैली के प्रवचनकार हैं । आत्मा का निगोद से निर्वाण तक गमन कैसे होता है ? तथा कैसे कर्मों का क्षय होता है, एवं आत्म गुणों का विकास किस तरह होता है ? इसका गहन चिंतन इस ग्रन्थ में उपलब्ध कराया गया है ।
करीब १५०० पृष्ठों का यह विशद ग्रन्थ है, इसे
SHREE MAHAVEER RESEARCH FOUNDATION संस्था ने तीन भागोंमें प्रकाशित किया है । अभ्यास योग्य इस ग्रन्थ को बार बार पढना आवश्यक है । निम्न पत्ते से प्राप्त करने 'का कष्ट करें ।
घर में बसाईये...पढीए.... पढाईए.... एवं भेट देकर ज्ञान वृद्धि करीए । वयम् जैन M
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कर्म की गति नयारी
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