Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Rsearch Foundation Viralayam

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Page 186
________________ सप्त,नय नैगम संग्रह व्यवहार ऋजुसूत्र शब्द समभिरूढ़ एवंभूत ये सात नय है। वक्तुरभिप्राय विशेषो नयः। कहने वाले वक्ता का अभिप्राय विशेष नय है,अतः नय एकांशग्राही है। सभी नय अपनी तरफ से अलगअलग स्वरूप बताते हैं। पूर्व पूर्व नयों का विशेष क्षेत्र बड़ा है और उत्तर नयों का विषय क्षेत्र संक्षिप्त होता जाता है। छोटा होता जाता है। नैगम व्यापक दृष्टिवाला है। उससे छोटा संग्रह और फिर क्रमशः छोटे छोटे होते जाते हैं। अंत में एवंभूत नय वर्तमान काल की सामान्य बात ही करता है। ये एक एक नय मिथ्याज्ञान स्वरूपी है। परंतु सभी नयों का सम्मिलित स्वरूप सम्यग् ज्ञान बनता है। जगत के मिथ्या दर्शन एक एक नय को लेकर बात करते हैं। अन्य नय की बात वे सोचते नहीं है। अतः ज्ञान सर्वांश सम्पूर्ण नहीं बन पाता। “षड् दर्शन जिन अंग भणीजे' नमिनाथ भगवान के स्तवन में अध्यात्म योगी आनंदघनजी महाराज ने इन शब्दों से यह कह दिया है कि हे जिनेश्वर प्रभु ! छः दर्शन आपके ही एक एक अंग है। हाथ-पैर-आंख-कान आदि जैसे शरीर के एक एक अंग है वैसे भिन्न भिन्न नय ये अंग है। सभी अंगों का बना हुआ, मिला हुआ सर्वांगी सम्पूर्ण शरीर कहलाता है वैसे ही सभी नयों का भिन्न भिन्न स्वरूप संपूर्ण मिलकर सर्व अपेक्षा से देखें तो वह ज्ञान सम्यग् ज्ञान बनता है। सभी नदियां स्वतंत्र अलग-अलग है,परंतु समुद्र सभी नदियों का मिश्रित स्वरूप है, उसी तरह मिथ्याज्ञान एकांशग्राही होता है। सापेक्ष नहीं निरपेक्ष होता है। जबकि सम्यग ज्ञान सर्वांशग्राही सापेक्ष होता है। सभी अपेक्षाओं को ग्रहण करके चलता है। स्याद्वाद-सप्तभंगी :-. स्याद्वाद-अनेकांतवाद यह जैन धर्म की एक मौलिक विशिष्ट देन है। यह ज्ञान की एक विशेष प्रक्रिया है । अनेकांतवाद और स्याद्वाद दोनों ही इसीके नाम है । सापेक्षवाद भी कहते हैं । “अनंत धर्मात्मकं वस्तु" - वस्तु अनंत धर्मात्मक होने से अनेक दृष्टिकोण से एक वस्तु को देख सकते हैं। सभी धर्म विरोधी नहीं है। विरोधी भासने वाले विपरीत धर्म भी एक ही वस्तु में भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से पड़े होते हैं। उदाहरणार्थ एक मनुष्य है। उसमें अनेकों का संबंध है। उन संबंधों वाच्य वह मनुष्य किसी का पुत्र भी है, किसी का पिता भी है। किसी का चाचा भी है, किसी का पौत्र भी है, किसी का पितामह (दादा) भी है। किसी का पति भी है। किसी का मामा भी है। किसी का जमाई (दामाद) भी है किसी का बहनोई एवं किसी का साला भी है। इस तरह न मालुम कितने संबंध उसमें होने से अनेक संज्ञाओं से वह वाच्य (१६९ कर्म की गति नयारी

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