Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Rsearch Foundation Viralayam

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Page 172
________________ कर लोखन की प्लेट के जैसे एकाकार एक रस हो गई हो अब सूई का स्वतंत्र आकार भी दिखाई न देता हो । अब चाहे उस प्लेट को हथोडे से पीटो या अग्नि में जलाकर गरम करो तो भी छूटी नहीं पडती है । वैसे ही रेशम के धागे पर पक्की मजबूत गांठ लगाई गई हो और ऊपर से मोम लगा दिया जाय अब खुलना सम्भव नहीं है। धागा टूट जाय पर गांठ न खुले, वैसे ही लोखन की प्लेट के टुकडे हो जाय पर पुनः सुई अलग नहीं पड़ती वैसे ही इस प्रकार का कर्म बंध किसी भी तपादि अनुष्ठान से क्षय नहीं होता। वह तो भोगना ही पडे - उसे निकाचित कर्म बंध हो जाता है कि अब वह किसी भी हालत में फल-विपाक दिये बिना न छूटे वह निकाचित जाति का कर्मबंध कहलाता है। उदाहरणार्थ भगवान महावीर स्वामी ने १८ वें त्रिपृष्ठ वासुदेव के जन्म में शय्यापालकों के कान में तपाया हुआ गरम-गरम शीशा डलवाकर जो भयंकर निचित कर्म बांधा था आखिर उसका परिणाम यह आया कि २७ वें - अन्तिम जन्म में महावीर के कान में खीले ठोकें गए। मगध के सम्राट मगधाधिप श्रेणिक ने शिकार में ऐसे कर्म बांधे कि जिसे भोगने नरक में जाना पड़ा। उपरोक्त चार दृष्टांतों को चित्र से समझाया गया है। चारों व्यक्ति सूंईयां अलग करने का ही प्रयत्न कर रहे हैं फिर भी प्रयत्न तथा समय में अंतर है, वैसे ही चार प्रकार के कर्मबंध होते हैं। उनके बारे में यह विवेचन है। जीव अपने मंद- तीव्र - तीव्रतर तथा तीव्रतम प्रकार के विविध कषायों के आधार पर उपरोक्त चार में से भिन्न-भिन्न प्रकार का कर्म बंध करता है, तथा जिस प्रकार का कर्म बंध करता है उसी प्रकार की काल अवधि -स्थिति रहती है। उसी तरह जीव कर्मफल भी भोगता है। बंधा हुआ कर्म भिन्न-भिन्न चार अवस्थाओं में रहता है। कर्म की अवस्थाएं : कर्म बंध के ही आधार पर बंध - उदय - उदीरणा तथा सत्ता की अवस्था का आधार है। बंधा हुआ कर्म इन चार अवस्थाओं में रहता है (१) बंध (२) उदय (३) उदीरणा तथा (४) सत्ता । बंध ही नहीं होता तो उदय-उदीरणा कहां से आते ? पैसे कमाए ही नहीं है तो फिर बैंक में जमा कहां से करते ? कर्म बांधे ही नहीं होते तो सत्ता में कहां से पड़े होते ? अतः कर्म बंध सबसे पहले मूल कारण है, अतः एक अपेक्षा से कर्म बंध को मूलभूत बीज अवस्था में स्वीकारना पड़ेगा। बीज होगा तो वृक्ष फल-फूल सब बनेंगे, अन्यथा नहीं। जीव प्रति समय आयुष्य के सिवाय सातसात कर्म बांधता है। एक आंख की पलक में असंख्य समय होते हैं। आंख टिमटिमाई कि असंख्य समय का काल बीत जाता है। ऐसे असंख्य समयों में से १ समय लिया जाय, उस १ समय में जीव सात-सात कर्म बांधता है, और जब आयुष्य कर्म भी बांध ले तब आठ कर्म का बंध होता है । यह तो हुई १ समय की बात । १ - कर्म की गति नयारी १५५ -

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