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प्रकाश होगा वही नाम मात्र व्यवहार में आएगा। सूर्य पर से बादल हवा के झोके से खिसक भी जाते हैं। परंतु आत्मा पर से कर्मावरण इतनी जल्दी या हवा के झोके से नहीं हट जाते। परिणाम स्वरूप आत्मा पर कर्म डट कर जम जाते हैं। यह कर्मावरण का कार्य है। इन आठ कर्मों के कार्य क्षेत्र को समझने के लिए शास्त्रकार महर्षियों ने ८ उदाहरण दिये हैं। उन्हें समझने से उनकी साम्यता सादृश्यता के कारण आठ कर्म भी समझ में आ जाएंगे। वे दृष्टान्त निम्न प्रकार है। ८ कर्म की उपमा वाले ८ दृष्टान्त :
पड-पडिहार-ऽसिमज-हड-चित्त-कुलाल-भंडगारीणं ।
जह एएसिं भावा, कम्माणऽवि जाण तह भावा ।।
आंख पर पट्टी, द्वारपाल (चौकीदार), मधुलिप्त तलवार, मदिरापान, जंजीर, चित्रकार, कुम्हार तथा भण्डारी आदि के जैसे स्वभाव एवं कार्य है वैसे ही स्वभाव तथा कार्य कर्मों के हैं। क्रमशः आठों के बारे में सोचें। (१) ज्ञानावरणीय कर्म - आंख पर पट्टी जैसा । आंख से देखते हैं । देखने
तकी शक्ति-ज्योति आंख में होते हुए भी जब आंख पर
पट्टी बांधी जाती है तब कुछ भी नहीं दिखाई देता। देखता मनुष्य भी अंध की तरह चलने लगता है। दर्शन की शक्ति-ज्योति होते हुए भी आंख पर बंधी पट्टी देखने में बाधक बन गई। आवरण बन गई। देखने की शक्ति को आच्छादित कर दी। ठीक इसी तरह आत्मा | में अनंत ज्ञान शक्ति है। जिससे आत्मा सब कुछ जान
सकती है। परंतु उस ज्ञान गुण पर आए हुए ज्ञानावरणीय | कर्म ने आंख पर की पट्टी की तरह काम किया। ज्ञान गुण
'को ढक दिया-छिपा दिया। अब अंधे की तरह बेचारा जीव अज्ञानाधीन प्रवृत्ति करता है। स्पष्ट समझ में नहीं आता। याद नहीं रहता। भूल जाता है इत्यादि सैकड़ों समस्याएं ज्ञान के क्षेत्र में उत्पन्न होती है। अतः ज्ञानावरणीय कर्म को आंख पर बंधी पट्टी की उपमा दी है।
(२) द्वारपाल के जैसा दर्शनावरणीय कर्म - राजमहल के बाहर द्वारपाल - चौकीदार जो खड़ा रहता है उसे पंडिहार-प्रतिहार कहते हैं, किसी को भी राजमहल में जाने से पहले
द्वारपाल रोकता है। द्वारपाल के द्वारा रोका गया S martun | मनुष्य जिस तरह राजा के दर्शन नहीं कर पाता • 'कर्म की गति नयारी.
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