________________
वर्गणा खिंच लेती है। आकर्षण का यह गुण और क्रिया आत्मा के गुण और क्रिया रूप में हैं। दूसरा दृष्टांत हम लोहचुम्बक का लें, चुम्बक में चुम्बकीय शक्ति पड़ी है। जिसके कारण चुम्बक स्वयं ही बाहरी लोहे के कणों को खिंचता है। बाहरी लोह कण
आकर चुम्बक के साथ चिपक जाते हैं। यह चुम्बक की अपनी आकर्षण शक्ति से ही हुआ है। ठीक उसी तरह कर्तृत्व शक्ति सम्पन्न आत्मा सक्रिय द्रव्य है। कर्म के बीज
भूत मूल कारण जो राग-द्वेषादि है इनके कारण आत्मा में हुए स्पन्दनों से आत्मा में कार्मण वर्गणाएं खिंचकर आती है। आकर्षित होती है। बार-बार की इस क्रिया से असंख्य कार्मण वर्गणाओं का आगमन आत्मा में होता है। ये धीरे-धीरे आत्म प्रदेशों पर जम
जाती है। आश्रव मार्ग से कार्मण वर्गणा का आगमन :
आश्रव इन्द्रियाश्रव' कषायाश्रव' अव्रताश्रव' योगाश्रव क्रियाश्रव
५ ४ ५ ३ २५ = ४२
__ आश्रव - आ + श्रव = आश्रव अर्थात् आगमन - आना। आत्मा में बाहर से कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं के आने की क्रिया को आश्रव कहते हैं। नौं तत्त्वों में आश्रव को भी एक तत्त्व गिना गया है। आश्रव के मुख्य पांच द्वार कहे गये हैं। जिन माध्यमों से या जिस क्रिया से आत्मा में कार्मण वर्गणा आती है वे आश्रव द्वार है ।(१) इन्द्रियाश्रव(२) कषायाश्रव (३) अव्रताश्रव (४) योगाश्रब और (५) क्रियाश्रव ये मुख्य पांच द्वार है। इन प्रवृत्तियों में रहा हआ जीव कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं को अपने में आने देता है। यह क्रिया जीव की ही है। उदाहरणार्थ सोचिए! चारों तरफ पहाड़िओं से घिरे सरोवर में जैसे पहाड़ों से बहते झरने के माध्यम से पानी आता है। नदी के माध्यम से पानी आता है और बीच का सरोवर भरता जाता है। दूसरा उदाहरण है - जैसे सरोवर के पानी के बीच तैरती हई एक नौका में नीचे छिद्र पड़ गया। नौका काष्ठ-लकड़े की है। लकड़े का पानी पर तैरने का स्वभाव है। परंतु नौका में छिद्र पड़ने से पानी नौका में आता जा रहा है। पानी यदि भरता ही गया, नौका में बढ़ता ही गया तो थोड़ी देर में नौका के डूबने की संभावना खड़ी हो जाएगी। ठीक इसी तरह आत्मा कर्म के अभाव में हल्की है। परंतु राग-द्वेष के छिद्र के माध्यम से बाहरी आकाश प्रदेश से कार्मण वर्गणा आत्मा में प्रवेश कर रही है। नौका में तो एक ही छिद्र था परंतु आत्मा में कार्मण वर्गणां के आने के पांच द्वार मुख्य है। (१२१
-कर्म की गति नयारी