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प्रभुने कहा है। अतः निगोद जीवों की खान हुई। सभी जीव निगोद के गोले में से निकले हैं। आए हैं, यह शब्द रचना है। ऐसी वाक्य रचना का ही प्रयोग किया जा सकता है। उत्पन्न हुए हैं, ऐसी शब्द रचना का उपयोग नहीं चलेगा, चूंकि नित्य अनादि-अनन्त शाश्वत द्रव्य उत्पन्न नहीं होता है। जो उत्पन्न होता है वह नष्ट होता है। जबकि आत्मद्रव्य नष्ट नहीं होता है अतः अनुत्पन्न द्रव्य है,। अतः अनादित्व सिध्द होता है। और अन्त नहीं है अतः अनन्तत्व सिध्द है। निगोद स्वरूप :
ऐसे अनुत्पन्न शाश्वत द्रव्य आत्मा का निगोद के गोले में मूलभूत अस्तित्व स्वीकारा गया है, उत्पत्ति नहीं। इसलिए निगोद को जीवों की खान-खदान कह सकते हैं। समस्त चौदह राज लोक स्वरूप ब्रह्मांड में असंख्य गोले पड़े हैं। जिस तरह बच्चे साबुन के पानी को कागज के गोल रवैये में मुंह से खींचकर फूंक मारकर हवा में उडाते है। उस समय गोल-गोल बुलबुले हवा में उड़ते हैं, तैरते हैं। कई लड़के मिलकर चारों तरफ से सैकड़ों बुलबुले उड़ाने लगे तो वायु मंडल-आकाश भर गया सा प्रतीत होता है। अद्यपि वे टकरा कर फूट जाते है। टूट जाते हैं । हवा होती है वह वायु मंडल में मिल जाती है और अस्तित्व समाप्त हो जाता है । यह तो उदाहरण दिया है समझने के लिए। ठीक इसी तरह शास्त्रों में सर्वज्ञोपदिष्ट निगोद के गोले का स्वरूप बताया गया है।
बुलबुले के जैसे गोल-गोल गोले समस्त चौदह राजलोक के सम्पूर्ण आकाशमें भरे पड़े हैं। इतना लम्बा-चौड़ा असंख्य योजन विस्तार वाला आकाश, और इस आकाश में मानों काजल की डिब्बी में काजल दबा-दबाकर भरी हो वैसे ही ये गोले भरे हुए हैं। इन गोलों की संख्या सर्वज्ञ ने असंख्य बताई है। इन प्रत्येक गोलों में अनन्त जीवों का निवास बताया है। एक-एक गोले में अनंत-अनंत जीव रहते हैं। ऐसे असंख्य गोले और एक गोले में जीवों की संख्या अनंत है, अतः सोचिए कि समस्त निगोद के गोलों में जीवों की संख्या कितनी हुई? असंख्य का अनंत से गुणाकार करिए । असंख्य X अनन्तानन्त अनंतानंत। निगोद में जीवों का जीवन :
जीवाजीवाभिगमसूत्र, प्रज्ञापनासूत्र, भगवतीसूत्र, जीवविचार प्रकरण एवं निगोद छत्रीशी आदि निगोद जीव विषयक वर्णन करनेवाले प्रमाणभूत ग्रंथ है। काफी विस्तार से इसकी सूक्ष्मतम चर्चा-विचारणा की गई हैं। यहां हम संक्षेप में सामने देखें
जीवों का वर्गीकरण करते हुए सर्व प्रथम मोक्ष में गए हुए मुक्त जीव बताए हैं जिनको सिध्द कहते हैं। दूसरे संसारी जो मोक्ष में नहीं गए हैं संसार चक्र की चारों
कर्म की गति नयारी