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रचना करता है तो सृष्टि की रचना में सहायक घटक द्रव्य जो पृथ्वी-पानी-अग्निवायु-आकाशादि की सत्ता यदि ईश्वर के पहले ही सिद्ध हो जाती है तो फिर ईश्वर ने क्या बनाया ? यदि आप ये कहें कि ईश्वर ने तो सिर्फ पृथ्वी-पानी आदि के संयोजन संमिश्रण ही किया है तो फिर यह कार्य तो जीव भी करता ही था। और ईश्वर के पहले ये पदार्थ थे तो ईश्वर को सृष्टिकर्ता क्यों कहें ? नगर कर्ता, भवन कर्ता आदि ही कहना पडेगा। जैसे कि कुम्हार को घट कर्ता कहते हैं न कि मिट्टी-पानी का कर्ता। तन्तुवाय-कुलाल-कुविद को वस्त्र का कर्ता कहते हैं, न की रूई कपास का कर्ता। इस तरह ईश्वर का सृष्टि कर्तृत्व ठहर नहीं सकता।
सृष्टिकर्ता ईश्वर यदि सादि है तो क्या अपने आप उत्पन्न हो गया? अच्छा मान भी लें। यदि सृष्टिकर्ता ईश्वर अपने आप उत्पन्न हो सकता है तो जगत् अपने आप क्यों नहीं उत्पन्न हो सकता? जगत् को भी स्वयंभू मानने में क्या आपत्ति है ? जड़चेतन पदार्थो के संयोग-वियोग और.जड़ पदार्थों में भी घात-संघात-विघात की प्रक्रिया चलती रही है जिससे गुण धर्मादि में परिवर्तन आते ही रहते हैं तो इस तरह वहां बीच में ईश्वर को लाने की आवश्यकता ही नहीं है। यदि यह पूछा जाय कि ईश्वर स्वयंभू नहीं है और सादि है तथा उसकि उत्पत्ति में अन्य कारण है । यदि अन्य कारण मानते हैं तो उन कारणों का तथा कारण के घटक द्रव्यों का -इच्छा के आधीन बता रहे तो फिर ईश्वर बड़ा हुआ कि इच्छा? क्या ईश्वर इच्छा के अधीन है या इच्छा के अधीन ईश्वर है ? यदि ईश्वर इच्छा के आधीन होकर सृष्टि की रचना करता है और उसी तरह कुम्हार-कुलालादि इच्छा द्वारा प्रेरित होकर, इच्छा के आधीन होकर ही घट-पट बनाता है तो मनुष्य ऐसे कुम्हार और ईश्वर में क्या अन्तर रहा ? दोनों में क्या भेद रहा? दोनों ही इच्छा के धरातल पर समान गिने जायेंगे। तो फिर मनुष्य को तो इच्छा के बन्धन से मुक्त होने के लिए, इच्छा को सीमीत करने के लिए, इच्छा पर विजय पाने के लिए उपदेश दिया जाता है और ईश्वर के लिए किसी उपदेश की आवश्यकता नहीं है क्यों ? क्या इच्छा अच्छी है ? इच्छा क्या है ? इच्छा किसे कहते हैं इस विषय में उमास्वाति वाचकमुख्य पूर्वधर महापुरुष प्रशमरति में कहते हैं
इच्छा, मूर्छा-कामः स्नेहो, गाय॒ ममत्त्वभिनन्दः ।
अभिलाष इत्यनेकानि रागपर्याय वचनानि ।।
इच्छा, मूर्छा, काम, स्नेह, गृद्धता, ममत्त्व, अभिनन्द, अभिलाषा इत्यादि राग के पर्यायवाची शब्द हैं। यदि इच्छा ही राग का रुपान्तर है पर्यायवाची समानार्थक शब्द है । तो फिर ईश्वर को रागादि युक्त ही मानना पड़ेगा। और रागादि युक्त हुआ तो वीतरागता नहीं रहेगी। वीतरागता का धरातल भुकम्प से हिलने लगा तो फिर उस पर रही हुई ईश्वरत्व की इमारत का स्थिर रहना सम्भव नहीं है। रागादि
कर्म की गति नयारी