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जन्म-पुनर्जन्म की सिद्धि होगी और उपरोक्त बात न स्वीकार करें तो ये लोकपरलोकादि भी सब व्यर्थ सिद्ध हो जायेंगे। और व्यर्थ सिद्ध हो जायेंगे तो तीन लोक की अनंत ब्रह्माण्ड की ईश्वर की सृष्टि असिद्ध होगी।
दूसरी बात यह भी है कि आकाश द्रव्य को जिस तरह नित्य शाश्वत माना गया है। अतः उसकी उत्पत्ति नहीं मानी गई है तो आत्मा भी शाश्वत द्रव्य है, उसकी उत्पत्ति मानने का कोई कारण नहीं रहता है। नैयायिक आत्मा, आकाश, काल, दिशा, मनादि नित्य द्रव्यों को अनुत्पन्न मानते हैं। अब सोचिए कि यदि ये नित्य पदार्थ पहले से ही थे, अनादि नित्य हैं तो फिर ईश्वर ने बनाया क्या ? ईश्वर के पहले भी यदि सष्टि थी तो फिर ईश्वर को सृष्टि कर्ती कहें कैसे ? उसी तरह ईश्वर ने कुम्हार की तरह यह सृष्टि बनाई है ऐसा वेद में कह कर ईश्वर को सबसे बड़ा महान कुम्भकार-कुलाल के रूप में ईश्वर की स्तुति करते हए कहा है कि -"नमः कुम्भकारेभ्य कुलालेभ्यश्च" उस महान कुम्हार रूप एवं कुलालरूप (वणकर) ईश्वर को नमस्कार हो जिसने इस सारी सृष्टि की रचना की है।
कुम्हार घडे बनाता है। कैसे बनाता है ? मिट्टी-पानी लेकर मिश्रित करके पिण्ड बनाकर चाक के ऊपर दण्ड से घूमाकर घडे बनाता है। यह सर्व सिद्ध प्रत्यक्ष बात है कि कुम्हार मिट्टी आदि से घडे बनाता है। प्रश्न यह है कि कुम्हार घडे बनाता है कि मिट्टी-पानी बनाता है ? जी नहीं मिट्टी-पानी का बनाने वाला कर्ता कुम्हार नहीं है। वह तो सिर्फ घडे का कर्ता है। मिट्टी-पानी जो पहले से विद्यमान पदार्थ थे उसको लेकर कुम्हार ने घड़े बनाए हैं। अतः सबसे बड़ा सृष्टि का रचयिता जिसको वेद में कुम्हारादि कहा गया है उसने यह सृष्टि कैसे बनाई ? कुम्हार की तरह ही बनाई तो मतलब यह हुआ कि बनाने योग्य पदार्थ, घटक पदार्थ पहले से ही थे, केवल ईश्वर इनका संयोजन करने वाला संयोजक ही रहा। जैसा कि नैयायिक कहते हैं किपरमाणु तो थे ही। परन्तु परमाणुओं को जोड़ने का, संयोजन करने का कार्य ईश्वरेच्छा से हुआ। परमाणुओं के मिश्रण से जिस तरह द्वयणुक, त्रयणुक, चतुर्युक आदि बनते गए और इस तरह महा स्कंध बने । इस तरह जगत के अनंत पदार्थ बने । परमाणु वाद पर सृष्टि का आधार रख कर भी परमाणु संयोजन में ईश्वरेच्छा का तत्त्व बीच में लाकर नैयायिकों ने वैज्ञानिकता सिद्ध नहीं की है। दूसरी तरफ अपने आप को महान तार्किक, तर्क रसिक कहनेवाले एवं प्रत्यक्ष को भी अनुमान से सिद्ध करने वाले तर्कविलासी तर्क जीवी नैयायिकों ने ईश्वरेच्छा को सिद्ध करने के लिए कोई तर्क नहीं दिये यही बड़ा आश्चर्य है। ईश्वर इच्छा क्यों है ? क्यों इच्छा तत्त्व परमाणुओं का संयोजन करे ? कैसे करे ? यहां कोई तर्क युक्ति नहीं है।
- यदि ईश्वर विश्वकर्मा है जो कुम्हार कुविन्द-कुलाल की तरह सृष्टि की कर्म की गति नयारी
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