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अविरत चल रहा है, चालू है उसे समाप्त हुआ यह कैसे कह सकेंगे ? तो तो फिर नित्य ईश्वर सदा काल ही सृष्टि निर्माण करता रहेगा, तब तक सदा काल ही सृष्टि रचना पूर्ण हो गई है, यह कहना सम्भव भी नहीं होगा। हजारों लाखों साल के बाद भी पूछेगे तो भी उत्तर यही मिलेगा कि अभी भी रचना कार्य जारी है। चल रहा है। अच्छा यह स्वीकारने पर ईश्वर को सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी कैसे कह सकेंगे ? सर्वशक्तिमान होते हुए भी ईश्वर इतने लम्बे काल से कार्यरत होते हुए भी अभी तक भी एक सृष्टि रचना का भी कार्य समाप्त नहीं कर सका है तो फिर सृष्टि के प्रलय की बारी तो कभी भी आयेगी ही नहीं। यदि सृष्टि रचना ही पूरी नहीं हुई है वही अपूर्ण है तो फिर प्रलय करेगा किस का ? क्या रचना पूरी किये बिना ही प्रलय कर देगा ? सृष्टि अपूर्ण और प्रलय पूरा यह कैसे स्वीकारे ? जो नहीं बना है उसका प्रलय कैसे संभव है? जो पुत्रजन्म ही नहीं वह मर गया यह परस्पर विरोधाभास खड़ा करेगा।
दूसरी तरफ ईश्वर के जिम्मे काम भी कई हैं। पहले सृष्टि निर्माण करना, फिर पालन करना, फिर जीवों को कर्मफल देना, सृष्टि का प्रलय करना, इत्यादि । मान लो काम ज्यादा है । इसलिए ईश्वर के तीन रूप की व्यवस्था की है। एक सृष्टि कर्ता, दूसरा पालनहार और तीसरा प्रलयकर्ता संहारक ! तो कर्मफल दाता के रूप में क्यों किसी की व्यवस्था नहीं है। फिर ईश्वर को एक रूप में ही मानें या अनेक रूप में माने ? चूं कि कार्य व्यवस्थानुसार तीन रूप स्वीकारे गये हैं, तो फिर सृष्टि में तो एक नहीं, अनेक कार्य हैं। पृथ्वी, पर्वत, समुद्र, नदी, नद, वृक्ष, स्वर्ग-नरक, पाताल, पशु-पक्षी, कृमि कीट-पतंग आदि सैकड़ों, हजारों लाखों नहीं, अगणित कार्य हैं। तो ईश्वर क्या अपने अगणित रूप करता है ? या अगणित ईश्वर मिलकर कार्य करते हैं। या एक ही ईश्वर क्रमशः एक के बाद एक कार्य करता है या किस तरह की व्यवस्था है? इस समस्या को हल करने के लिए यदि आप यह कहो कि ईश्वर क्रमशः एक के बाद एक कार्य करता है । तो पहले-पीछे की क्रम व्यवस्था किस तरह बैठाई है। पहले क्या बनायां? बाद में क्या बनाया ? फिर उसके बाद क्या बनाया ? इत्यादि । मनुस्मृति में बताये गये क्रम के अनुसार समझ लिया जाय कि इस क्रम से बनाया है तो क्या सभी कार्य समाप्त हो गये ? यदि यह कहते हो तो अब सृष्टिकर्ता ईश्वर की निरुपयोगिता सिद्ध होगी । अब ईश्वर को निरर्थक निष्काम बैठा रहना पड़ेगा तो शायद ईश्वर के नित्यत्व के अस्तित्व पर भी वज्रपात होगा।
अच्छा क्रमशः उत्पत्ति स्वीकार करने में नाना (विविध) ईश्वर की कल्पना सामने आयेगी । कितने ईश्वरों ने मिलकर सृष्टि का कार्य किया है ? नाना ईश्वर मानने में एकेश्वरवाद का पक्ष चला जायेगा और नाना नहीं मानें तो अनन्त ब्रह्मांड, स्वर्गपाताल, नरक, मनुष्य, कृमि, कीट-पतंगादि किस क्रम से बना पहले क्या और कैसे
कर्म की गति नयारी