________________
से जीव एक के बाद आगे की दूसरी इन्द्रिय प्राप्त करता है। ऐसा ही नहीं कि क्रमशः आगे चढ़ता ही जाय । गिर भी सकता है । वापिस दोईन्द्रिय पर्याय में जा गिरता है, पुनः चढ़ता है । पुनः एकेन्द्रिय में भी जा गिरता है । विकलेन्द्रिय में २-३-४ इन्द्रियवाले जीवों की गिनती है। उनमें भी चढ़ाव उतार सतत चलता है । चढ़ते भी है, और गिरते भी है । अन्तिम इन्द्रिय है पांचवी । अतः पंचेन्द्रिय पर्याय यह इन्द्रियों में अन्तिम है। अब जीव पंचेन्द्रिय पर्याय में प्रवेश करता है । जैन जीव विज्ञानानुसार पांच इन्द्रियों वाले जगत में चार प्रकार के जीव होते हैं (१) तिर्यंच गति के पशु-पक्षी (२) मनुष्य गति के मानव (३) स्वर्ग के देवी-देवता और (४) नरक गति के नारकी जीव। चारों गति में ये चारों प्रकार के जीव पंचेन्द्रिय पर्याय वाले कहलाते हैं । अब चउरिन्द्रिय पर्याय के ऊपर उठकर जीव पंचेन्द्रिय पर्याय में सर्व प्रथम तिर्यंच गति के पशु-पक्षी के रूप में आकर जन्म लेता है । पशु-पक्षी भी तीन प्रकार में गीने जाते हैं । (१) जलचर ( २ ) स्थलचर (३) खेचर । पहले जीव जलचर में जाकर मछली, मत्स्य, मगरमच्छ, कछुआ आदि बनता है। समुद्र में मछलियों की जातियां, आकृति भेदादि से लाखों प्रकार की है । तथा संख्या में समुद्री मछलियों की गिनती असम्भव है। उतने प्रकारों में जीव जाय और सभी जाति में जन्म करता हुआ जलचर में से स्थलचर में आने में असंख्य वर्षों का, संख्यात जन्मों का काल बीत जाता है।
-
स्थलचर पर्याय में हाथी, घोड़ा, बैल, ऊंट, गधा, कुत्ता, बिल्ली, भैंस, भेड़-बकरी, शेर, सिंह, चित्ता, भालू, बन्दर, सांप, चूहा, छिपकली आदि में असंख्य वर्षों का काल बीता देता है । खेचर = ख अर्थात् आकाश । आकाश में उड़नेवाले पक्षी खेचर कहलाता है। इसमें कौवा, तोता, मैना, कबूतर, चिड़िया आदि के सेंकड़ों जन्म धारण करता है । इस तीर्यंच गति में पंचेन्द्रिय पशु-पक्षी में भी गिरता-चढ़ता हुआ असंख्य जन्म-मरण धारण कर सकता है । इस तरह असंख्य वर्षों का काल बीता देता है। शेर-चित्ते आदि के कई हिंसक जन्म धारण कर अन्य पंचेन्द्रिय पशु-पक्षीयों को मारने का पाप करके जीव नरक गति में जाता है। कितना अधःपतन हुआ? कितना जीव नीचे गिरा ? वहां नरक गति में सागरोपमों अर्थात् असंख्य-अगणित वर्षों का काल बीता देता है। यहां से पुनः तिर्यंच गति में वापिस पशु बनता है । पुनः नरक गति में गिरता है । पुनः तिर्यंच में आता है, पुनः गिरता है । इस तिर्यंच से नरक और नरक से पुनः तिर्यंचमें जीव कितने जन्म बीता देता है ? कितना लम्बा काल पसार कर देता है । आप चित्र में देखेंगे तो पता चलेगा कि यहां से जीव वापिस नीचे गिरता हुआ चउरिन्द्रिय, तेइन्द्रिय, दोइन्द्रिय और यहां तक की पुनः एकेन्द्रिय पर्याय में पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पतिकाय के भव करता है । फिर उसी तरह वापिस ऊपर चढने की यात्रा शुरू करता है। फिर क्रमशः
- कर्म की गति नयारी
२७
-