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उनसे बोध प्राप्त कर कितने जीव मोक्ष में गए तो अच्छा ही हुआ। चूं कि उतने जीव निगोद से बाहर निकले। और कितने जीवों ने तीर्थंकर नामकर्म निकाचित किया है ? अर्थात् अरिहंत बनने का निश्चय किया । अतः उपकार भी द्विगुणीत - त्रीगुणीत - शतगुणीत हुआ । यह कितना अच्छा हुआ । हमें इस विषय में प्रतिदिन अनुमोदना व्यक्त करनी चाहिए । प्रभु महावीरादि अनंत तीर्थंकर अनंत अनंत अभिवादन के योग्य है । अनंत बार वंदनीय - नमस्करणीय है । हम उनका जितना उपकार मानें उतना कम ही है।
निगोद से निकले हुए जीव की संसार यात्रा :
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कर्म की गति नयारी