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काल की बदलती हुई करवट में सब कुछ बदलता रहता है। एक जन्म में १८ प्रकार के सम्बंध :
मथुरा नगरी की एक नई नई तरूण वेश्या ने एक पुत्र-पुत्री के युगल को जन्म दिया। अपनी वेश्यावृत्ति के व्यवसाय को चलाने हेतु से दोनों को चिन्ह रूप अंगूठी पहनाकर एक लकडे की पेटी में बन्द करके नदी के प्रवाह में बहा दिये। बहती-तैरती पेटी सौर्यपुर शहर के नदी किनारे आइ, वहां दो व्यापारी मित्र बैठे थे, उन्होंने पेटी ली। खोली । उसमें से एक लड़का और एक लड़की निकलें। दोनों मित्र संतान के अभाव से पीडित थे। अतः दोनों ने एक एक बांट लिया और शर्त यह रखी कि भविष्यमें इनकी शादी करनी। वैसा ही हआ। यौवनवय में शीघ्र ही दोनों की शादी कर दी गई। कल के दोनों भाई-बहन आज पति-पत्नी बन गये।
एक बार जुआ खेलते समय अंगूठी से दोनों को ख्याल आया और बाद में अपने पालकों से पूछकर वास्तविकता जानकर कि हम भाई-बहन है अतः संबंध छोड़ दिया। बहन ने पश्चाताप से दीक्षा ली और भाई व्यापारार्थ मथुरा गया। योगानुयोग कर्म संयोग वश कुबेरदत्ता वेश्या जो अपनी मां थी उसी के यहां ठहरा। उसी के साथ (मां के साथ) देह संबंध का व्यवहार चलने लगा। दैव योग वश एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । इधर बहन साध्वी को अवधिज्ञान होने से यह विचित्र योग देखकर साध्वी विहार करके मथुरा नगरी में इस वेश्या के घर आई । घर के प्रवेश द्वार में उस रोते हुए बालक को शांत करने के बहाने से लौरी गाने लगी। उस लौरी में साध्वी ने अपने संबंध सुनाए । हे बालक ! क्यों रोता है तेरे मेरे तो कई संबंध है । तूं मेरा भाई होता है, पुत्र भी कहलाता है, देवर भी है, भतीजा भी होता है, चाचा भी लगता है तथा पौत्र भी लगता है । तेरे पिता मेरे भाई भी होते हैं, पिता, दादा, पति, पुत्र
और श्वसुर भी लगते हैं। हे बालक ! तूं रो मत भाई तेरी मां मेरी भी मां लगती है, तेरे बाप की भी मां लगती है। मेरी भुजाई, पुत्रवधु, सास और शोक्य भी लगती है। इस तरह १८ प्रकार के सभी संबंध तेरे मेरे बीच लगते हैं । तेरा बाप और मैं भाई-बहन हैं,
और पति-पत्नी के संबंध से जुड़े। इतना ही नहीं हम छूटे तो भाई (पति) कुबेरदत्त यहां मथुरा में आकर अपनी मां के साथ ही देह संबंध करता हआ पति रूप में रहने लगा और उससे एक पुत्र पैदा हआ। हाय ! इस संसार की कैसी भयंकर विचित्रता? अब क्या किया जाय? किसको मुंह दिखाएं साध्वी जो कुछ बोल रही थी वह वेश्या ने और कुबेरदत्त दोनों ने सुना । सुनकर बहुत ही दुःख हआ। विषय वासना के निमित्त कैसे भयंकर पाप कर्म हो जाते हैं। पश्चाताप से मन वैराग्यवासित हआ। भाई ने भी दीक्षा ली । साधु बनकर कड़ी तपश्चर्या करके पाप धोने का संकल्प किया। वेश्या ने वेश्यावृत्ति छोड़ दी । सभी पापों को धोने के लिए पश्चाताप एवं प्रायश्चित की प्रवृत्ति में (४३
कर्म की गति नयारी .