Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ अध्यात्मयोगी पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयकलापूर्णसूरीश्वरजी : एक झलक जन्म : वि.सं. १९८०, वै.सु. २, फलोदी (राज.) माता : क्षमाबेन पाबुदानजी लुक्कड़ पिता : पाबुदानजी लुक्कड़ गृहस्थी नाम : अक्षयराजजी पुत्र : (१) ज्ञानचंदजी (पू.आ. विजयकलाप्रभसूरिजी) _(२) आसकरणजी (पू.पं. कल्पतरुविजयजी) पत्नी : रतनबेन (पू.सा. सुवर्णप्रभाश्रीजी) व्यवसायभूमि : राजनांदगांव (छत्तीसगढ) दीक्षा : वि.सं. २०१०, वै.सु. १०, फलोदी (राज.) दीक्षा-दाता : पू. मुनिश्री रत्नाकरविजयजी वड़ी दीक्षा : वि.सं. २०११, वै.सु. ७, राधनपुर (गुजरात) वड़ी दीक्षा-दाता : पू.आ.श्री वि. कनकसूरीश्वरजी म.सा. दीक्षा-गुरु : पू. आचार्यश्री विजयकनकसूरिजी म.सा. वड़ी दीक्षा-गुरु : पू. मुनिश्री कंचनविजयजी समुदाय : तपागच्छीय संविग्न शाखीय कच्छ-वागड़ समुदाय परंपरा : पद्म-जीत-हीर-कनकसूरि-देवेन्द्रसूरि-कंचनविजयजी पंन्यास पद : वि.सं. २०२५, माघ शु. १३, फलोदी (राज.) आचार्य पद : वि.सं. २०२९, मार्ग. सु. ३, भद्रेश्वर तीर्थ (कच्छ) पंन्यास-आचार्य पद प्रदाता : पू.आ.श्री विजयदेवेन्द्रसूरीश्वरजी उत्तराधिकारी : वर्तमान गच्छनायक पू.आ.श्री वि. कलाप्रभसूरीश्वरजी मुख्य कर्मभूमि : कच्छ वागड़ विहार क्षेत्र : कच्छ-गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, महाराष्ट्र, कर्णाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश आदि साहित्य : तत्त्वज्ञान प्रवेशिका, अध्यात्मगीता, सर्वज्ञकथित सामायिक धर्म, परम तत्त्व की उपासना, ध्यानविचार, मिले मन भीतर भगवान, कहे कलापूर्णसूरि भाग ४, सहज समाधि आदि प्रथम-अंतिम चातुर्मास : फलोदी (राज.) दीक्षा पर्याय : ४८ वर्षा साधना : दिन में भक्ति, स्वाध्याय, व्याख्यान, वाचना, हितशिक्षा आदि, रात को कायोत्सर्ग, ध्यान, जाप आदि शिष्य गण : ३६ साध्वी गण : ५०० काल धर्म: वि.सं. २०५८, माघ सुद ४, शनिवार १६-२-२००२, केशवणा (राज.) अग्नि संस्कार : माघ सुद ६, सोमवार, १८-२-२००२, शंखेश्वर तीर्थ (गुजरात)

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 656