Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
View full book text
________________
१०४ ]
[ कर्म सिद्धान्त
दो भाई थे। एक बार दोनों एक ज्योतिषी के पास गए। बड़े भाई ने अपने भविष्य के बारे में पूछा । ज्योतिषी ने कहा-"तुम्हें कुछ ही दिनों के पश्चात् सूली पर लटकना पड़ेगा । तुम्हें सूली की सजा मिलेगी।" छोटे भाई ने भी अपना भविष्य जानना चाहा। ज्योतिषी बोला-तुम भाग्यवान् हो। तुम्हें कुछ ही समय पश्चात् राज्य मिलेगा, तुम राजा बनोगे। दोनों आश्चर्यचकित रह गए। कहां राज्य का लाभ और कहाँ सूली की सजा ? असम्भव-सा था। दोनों घर आ गए । बड़े भाई ने सोचा-ज्योतिषी ने जो कहा है, सम्भव है वह बात मिल जाए। अब मुझे सम्भल कर कार्य करना चाहिए । वह जागरूक और अप्रमत्त बन गया। उसका व्यवहार और आचरण सुधर गया। उसे मौत सामने दीख रही थी। जब मौत सामने दीखने लगती है तब हर आदमी बदल जाता है। बड़े-से-बड़ा नास्तिक भी मरते-मरते आस्तिक बन जाता है । ऐसे नास्तिक देखे हैं जो जीवन भर नास्तिकता की दुहाई देते रहे, पर जीवन के अंतिम क्षणों में पूर्ण आस्तिक बन गए। बड़े भाई का दृष्टिकोण बदल गया, आचरण और व्यवहार बदल गया और उसके व्यक्तित्व का पूरा रूपान्तरण हो गया।
छोटे भाई ने सोचा-राज्य मिलने वाला है, अब चिन्ता ही क्या है ? वह प्रमादी बन गया। उसका अहं उभर गया। अब वह आदमी को कुछ भी नहीं समझने लगा । एक-एक कर अनेक बुराइयाँ उसमें आ गईं। भविष्य में प्राप्त होने वाली राज्य सत्ता के लोभ ने उसे अंधा बना डाला । सत्ता की मदिरा का मादकपन अनूठा होता है । उसकी स्मृति मात्र आदमी को पागल बना देती है । वह सत्ता के मद में मदोन्मत्त हो गया। वह इतना बुरा व्यवहार और आचरण करने लगा कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
कुछ दिन बीते । बड़ा भाई कहीं जा रहा था। उसके पैर में सूल चुभी और वह उसके दर्द को कुछ दिनों तक भोगता रहा । छोटा भाई एक अटवी से गुजर रहा था। उसकी दृष्टि एक स्थान पर टिकी । उसने उस स्थान को खोदा और वहाँ गड़ी मोहरों की थैली निकाल ली।
__ चार महीने बीत गए। दोनों पुन: ज्योतिषी के पास गए। दोनों ने कहा-ज्योतिषीजी ! आपकी दोनों बातें नहीं मिलीं। न सूली की सजा ही मिली और न राज्य ही मिला। ज्योतिषी पहुँचा हुआ था। बड़ा निमित्तज्ञ था । उसने बड़े भाई की ओर मुड़कर कहा-"मेरी बात असत्य हो नहीं सकती। तुमने अच्छा आचरण किया अन्यथा तुम पकड़े जाते और तुम्हें सूली की सजा मिलती। पर वह सूली की सजा शूल से टल गई। बताओ, तुम्हारे पैर में शूल चुभी या नहीं ?" छोटे भाई से कहा-"तुम्हें राज्य प्राप्त होने वाला था। पर
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org