Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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कर्म सिद्धान्त : एक टिप्पणी
डॉ० शान्ता महतानी
प्रायः यह कहा जाता है कि अच्छे कर्म का फल अच्छा होता है और बुरे कर्म का फल बुरा । यहां प्रश्न उत्पन्न होता है कि 'अच्छा' क्या है और 'बुरा' क्या है ? इन पदों को परिभाषित करना अत्यन्त कठिन है क्योंकि 'अच्छा' और ' बुरा' इन पदों को परिभाषित करते समय हम उन्हें कुछ परिस्थितियों या वस्तुओं या मानसिक अवस्थाओं से जोड़ते हैं इतना ही नहीं कुछ व्यक्तियों के लिये एक ही परिस्थिति अच्छी हो सकती है तो अन्यों के लिये बुरी । न केवल यही बल्कि यह भी सही है कि परिस्थिति जो एक समय विशेष में अच्छी कही गयी, वही अन्य समय में बुरी कही जाती है । इसी प्रकार जब हम संसार में देखते हैं तो पाते हैं कि कुछ व्यक्ति दुराचारी और बेईमान होते हुए भी सुखी जीवन बिताते हैं तो दूसरी ओर सदाचारी और ईमानदार व्यक्ति दुःखी देखे जाते हैं | जब इन विसंगतियों के बारे में प्रश्न उठाया जाता है तो उनकी यह कहकर व्याख्या की जाती है कि ये अपने पिछले जन्मों का फल भोग रहे हैं और इस जीवन में जो कर्म कर रहे हैं, उनका फल अगले जीवन में भोगेंगे ।
'कर्म' पद की व्याख्या के लिये इस शब्द के अन्य प्रयोगों पर विचार कीजिये । उदाहरण के रूप में इस कथन को लें - 'करम गति टारे नाहिं टरे' । इस कथन में प्रयुक्त 'कर्म' पद पर जब हम विचार करते हैं तो पाते हैं कि यहां 'कर्म' पद का वह अर्थ नहीं है जो ऊपर के उदाहरण से लक्षित होता है । यहाँ 'भाग्य' के अर्थ में 'कर्म' पद को समझा जा रहा है । लेकिन भाग्य भी तो कर्म के अनुसार निर्धारित होता है ।
एक और अन्य अर्थ पर विचार कीजिये । 'वह अपने कर्मों का फल भोग रहा है।' इस कथन में व्यक्ति के इसी जीवन में कर्मों के आधार पर प्राप्त फलों की बात कही जा रही है । उदाहरण के रूप में कोई गरीब लड़का मेहनतमजदूरी करके शिक्षा प्राप्त करता है और अपनी योग्यता के आधार पर अच्छी नौकरी पा जाता है तो हम कहते हैं यह उसके कर्मों का फल है । इसी प्रकार अगर कोई व्यक्ति निरन्तर शराब पीने के कारण अपना स्वास्थ्य खराब कर लेता है तो भी हम इसी प्रकार की बात कहते हैं ।
उपर्युक्त सभी उदाहरणों में कर्म के द्वारा कुछ व्यवहारों की व्याख्या
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