Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 356
________________ कर्म और पुरुषार्थ की जैन कथाएँ ] [ ३५१ तथा धूमधाम से वासुदेव पद का अभिषेक किया गया। त्रिपृष्ठ वासुदेव राजसी भोग-विलास में तल्लीन थे। महारानी स्वयंप्रभा के श्रीविजय और विजय नामक दो पुत्ररत्नों की उत्पत्ति हुई। एक बार संगीत मंडली भ्रमण करती हुई राज दरबार में उपस्थित हुई। गायक अपनी कला में पूर्ण निपुण थे । ज्योंही उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया तो सब मंत्रमुग्ध हो गये एवं उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। एक दफा रात्रि को इस प्रकार का मनोरंजक कार्यक्रम चल रहा था। राजा अपनी शय्या पर लेटे हुए थे । संगीत की स्वर-लहरी सभी को मंत्रमुग्ध कर रही थी। त्रिपृष्ठ ने अपने शय्यापालक को कहा कि जब मुझे पूर्ण निद्रा आ जावे तो संगीत गाने वालों को विश्राम दे देना। इधर वासुदेव पूर्ण निद्राधीन हो गये किन्तु शय्यापालक स्वयं संगीत में इतना गृद्ध हो गया कि संगीतज्ञों को विश्राम का आदेश नहीं दिया तथा रात-भर संगीत होता रहा । वासुदेव जब जगे तो देखा कि संगीत पूर्ववत चल रहा है। राजा को आक्रोश आया एवं शय्यापालक को कहा कि इन्हें विश्राम क्यों नहीं दिया? शय्यापालक ने कहा-"महाराज ! मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। मैं स्वयं संगीत सुनने में आसक्त हो गया इसलिये आपके आदेश का पालन नहीं हो सका।" त्रिपृष्ठ वासुदेव ने कहा-"अच्छा ! मेरे आदेश की अवहेलना । सामन्तो ! यह संगीत सुनने का अत्यधिक रसिक है, इसलिये इसके कानों में गर्म शीशा डाला जाय ।" सामन्तों ने आज्ञानुसार वैसा ही किया। शय्यापालक ने तड़पते हुए प्राण छोड़े। सत्तान्ध बनकर त्रिपृष्ठ वासुदेव ने कर्म के बन्धन के फलस्वरूप आयु पूर्ण कर सातवीं नारकी में जन्म लिया । तैंतीस सागरोपम का आयुष्य पूर्ण कर सिंह, नारकी, चक्रवर्ती, देवता, मानव, देव आदि भवों को पूर्ण कर वर्द्धमान महावीर के भव में जन्म लिया । महावीर अभिनिष्क्रमण के बाद जंगलों, गफानों में ध्यान करते हये "छम्माणी" ग्राम के निकट उद्यान में एक निर्जन स्थान में ध्यानस्थ थे। उस समय शय्यापालक का जीव-जिसके कानों में गर्म-गर्म सीसा उंडेला गया था, वह ग्वाले के भव में बैलों की जोड़ी को साथ लेकर जहाँ महावीर ध्यानस्थ थे, वहाँ पर पाया एवं बोला- "हे भिक्षु ! मैं कुल्हाड़ी घर छोड़ आया हूँ, उसे लेकर आता हूँ तब तक बैलों की रखवाली रखना।" इधर बैल चरते हुए घनी झाड़ियों में ओझल हो गये । ग्वाला वापिस आया तो बैलों की जोड़ी नजर नहीं आयी। ग्वाले की आँखों में आग बरसने लगी। वह महावीर को अभद्र शब्दों से बोलने लगा। किन्तु भगवान तो ध्यानस्थ थे, कोई उत्तर नहीं दिया। तब ग्वाले का क्रोध अधिक बढ़ गया और बोला-"अच्छा, तुम मेरी बात सुन नहीं रहे हो तो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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